अपन्हुति दूर किया जाता है । भ्रान्तापह्न ति को 'निश्चय' के नाम से एक स्वतन्त्र अलंकार भी माना गया है। यह नहीं है प्रेम यह उन्माद का है रूप गहित, देख सुन्दरता किसी की वासना आकृष्ट होती। प्रेम अनुभव के पुलक में स्रोत सा आनन्द में भर, प्राण को मन को हिलाता बिसुध सा करके । भट्ट कृष्ण ने राधा के प्रेम को वासना बताकर उसके प्रेम को भ्रान्ति को मिटा दिया है और सच्चे प्रेम के रूप को भी स्पष्ट कर दिया है। ५पर्यस्तापह्न ति-मे किसी वस्तु के धर्म का निषेध दूसरी वस्तु में उसके आरोप के लिए किया जाता है। पर्यस्त का अर्थ हो है फेंका हुआ। इसमें एक वस्तु का धर्म दूसरी वस्तु पर फेंका जाता है, आरोपित किया जाता है । अतः, जिस वस्तु के धर्म का निषेध किया जाता है प्रायः वह दो बार आता है। घनी नहीं धनवान हैं संतोषी धनवान । निर्षन दोन नहिं दीन हैं क्षद्र-हृदय जन मान ।-राम ___ संतोषी में धनवान के धर्म का आरोप करने के लिए धनी में धनवान के धर्म का निषेध किया गया है। ऐसे ही क्षुद-हृदय-जन में दोनता का आरोप करने के लिए निर्धन में दीनता का निषेध किया गया है । ६ छेकापन ति–में अपनी गुप्त बात प्रकट होने पर मिथ्या समाधान द्वारा उसे छिपाया जाता है। ऐनक दिये तने रहते हैं अपने मन साहब बनते हैं। उनका मन औरों के काबू, क्यों सखि सज्जन? ना सखि बाबू।-उपा. अपने सज्जन के सम्बन्ध में गुप्त रहस्य प्रकट हो जाने के कारण उसे 'बाबू के मिथ्या समाधान से छिपाया गया है। भयो निपट मो मन मगन सखी लखत घनश्याम । लख्यो कहाँ नन्दलाल नहिं जलघर दीपति धाम ।-प्राचीन जब अंतरंग सखो से नायिका ने यह कहा कि मेरा मन घनश्याम को देखते हो मगन हो गया तब उसको खो ने पूछा कि नंदलाल को कहाँ देखा ? इससे नायिका ने अपने रहस्य को प्रकट होता जानकर इस मिथ्या उत्तर से कि मैं काले मेघ के विषय में कह रही हूँ, सत्य को छिपाया है। ७ विशेषापड ति में विशेष प्रकार से अपह्न ति–गोपन के कार्य का वर्णन किया जाता है।
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