पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४७७

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काव्यदर्पण यहां विपक्षी का बेधन रूप कार्य पहत्ते होता है, पीछे शर-संधान कारण का -ज्ञान होता है। दोनों रथी इस शीघ्रता से थे शरों को छोड़ते। जाना न जाता था कि वे कब थे धनुष पर जोड़ते। यहां भी कार्य के पश्चात् कारण वर्णित है । इसका यह एक नया ही रूप है । पाँचवीं छाया गम्यौपम्याश्रय ( पदार्थगत ) कई अलकारों में प्रौपम्य अर्थात् उपमेय-उपमान-भाव छिपा रहता है। इससे •सादृश्य-गर्भ का यह गम्यौपम्याश्रय नामक तोखरा भेद होता है। इसके बारह भेद होते हैं। पहले पदार्थगत में तुल्ययोगिता और दीपक, दो अलंकार आते हैं । १३ तुल्ययोगिता (Equal pairing ) जहाँ गुण वा क्रिया के द्वारा अनेक प्रस्तुतों-उपमेयों वा अप्रस्तुतों -उपमानों का एक ही धर्म कहा जाय, वहाँ यह अलंकार होता है। अनेक उपमेयों वा उपमानों का एक ही धर्म कहे जाने को प्रथम तुल्ययोगिहते हैं। (क) उपमेयों का एक धर्म- सीता सुषमा सुधा सिन्धु में अंग भूपसुत डबे, वीर, धीर, मतिमान, जितेन्द्रिय मन में तनिक न ऊबे। मन में हर्षित हुए विवेकी महिमा देख प्रकृति की, हरि भक्तों पर कभी न चलती माया काम विकृति की।-रा० च० उ० यहां उपमेय वीर, धीर, मतिमान और जितेन्द्रिय राजाओं का एक ही धर्म 'न ऊबना' कहा गया है। (ख) उपमानों का एक धर्म- इसी बीच में नप आज्ञा से सीता गयो बुलायो, सखियों सहित लिये जयमाला तुरत वहाँ वह आयी। रति, रंभा, भारती, भवानी उसके तुल्य नहीं हैं, सकुनिसुता त्रिभुवन में कोई हंसी तुल्य कहीं है।-रा० च० उ० यहाँ रति, रम्भा आदि उपमानों का तुल्य न होना एक ही धर्म उक्त है।