पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८

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से सुनाई पड़ता है। राग की समस्त छोटी-बडी नाड़ियां मानों अन्त्यानु पास के नाड़ी चक्र में केन्द्रित रहती है, जहाँ से बल तथा शुद्ध रक्त ग्रहण करके छद-शरीर में स्फूर्ति संचार करती हैं ! क्षेमेन्द्र के कथनानुसार, 'कवि को छंदो योजना रस और वर्णनीय विषयों के अनुकूल ही करना चाहिये, जिससे नाद-सौन्दर्य के साथ-साथ रस को भी अभिव्यक्ति सुस्पष्ट हो । 'वियोगिन' छन्द अपने नाम के अनुसार पढ़ने के समय पाठक को एकान्त अभिभूत कर देता है और करुणा तथा वेदना के सागर में डुबो देता है। शुक्लजी का यह कहना यथार्थ है कि "छन्द के बंधन के सर्वथा त्याग से हमें तो अनुभूत नाद-सौन्दयं को प्रेषणीयता ( Communicability of sound impulse ) का प्रत्यक्ष ह्रास दिखाई पड़ता है।" छंद ही काव्य का संगीत है। संगीत में जो संयम ताल से आता है वहीं संयम कविता में छद से आता है। ___इस विराट् सृष्टि के अणु-परमाणु में संगीत है और वीणा के तारों में झंकृत होनेवाला प्रत्येक सुर हमारे हृदयाकाश में गुजित होता है। अतः, कविता के रूप में प्रगट होनेवाला प्रत्येक शब्द इस विश्वव्यापी संगीत की झंकार है। काव्य और कल्पना कल्पना का धातुगत अर्थ होता है सामर्थ्य । इसकी समर्थता से रचना-पक्ष की पुष्टि होती है । अगरेजी में एतदर्थबोधक शब्द इमेजिनेशन ( imagination) माना जाता है। इस शब्द में जो इमेज ( image ) है उसका अर्थ होता है- प्रतिमा, मूर्ति, आकार, छाया और प्रतिविब। कल्पना से कोई मूर्ति हमारे सामने श्रा खड़ी होती है। ___ इमेजिनेशन के कई अर्थ हैं-उद्भावन भावना, विचार, तरङ्ग, अनुमान, मन की उड़ान और मस्तिष्क के खेल । कोई-कोई व्यंग्य में 'दिमागी ऐयाशो' भी कह देते है। इमेजिनेशन से कोई-कोई कल्पना का ही अर्थ लेते हैं। अनुपस्थित वस्तु की मानस-प्रतिमा खड़ी करने की शक्ति का नाम कल्पना है। कल्पना मन को एक विशिष्ट शक्ति है। कल्पना कवि को अप्तत् से सत् को सृष्टि करने में समर्थ बनाती है । कल्पना के बल से कवि मनुष्य के लिए जहाँ तक साध्य है, रचना कर सकता है । साहित्यिक चरित्र को सृष्टि में ही कल्पना का जौहर खुलता है। १. काव्ये रसानुसारेण वर्णनानुगुणेन च । कुर्वीत सर्ववृत्तानां विनियोग विभागवित् । सुवृत्ततिलक