पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८४

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४०४ काव्यदर्पण सब सुरबन सुखमाकर सुखद न थोर । सीय अंग लखि कोमल कनक कठोर । तुलसी इसमें भी उपमेय-उपमान के उत्कर्षापकर्ष का निर्देश है। २ उपमेय के उत्कर्ष और उपमान के अपकर्ष का न कहा जाना- तब कर्ण द्रोणाचार्य से साश्चर्य यों कहने लगा। आचार्य देखो तो नया यह सिंह सोते से जगा । रघुबर विशिख से सिंधु सब सैन्य इससे व्यस्त है, यह पार्थनंदन पार्थ से भी धीर वीर प्रशस्त है।-गुप्त इसमें अभिमन्यु का आधिक्य वर्णित है, पर अर्जुन और अभिमन्यु के उत्कर्षापकर्ष का कारण अनुक्त है। सरयू-सलिल को स्वर-सुधा समता न पा सकती कभी, साकेत के माहात्म्य को वाणी न गा सकती कभी। प्रथम पंक्ति में सरयू-सलिल को विशेषता तो वर्णित है, पर इसका तथा सुधाः के अपकर्ष का कारण उक्त नहीं है । ३ केवल उपमेय के उत्कर्ष के कारण कहा माना- मृदुल कुसुम सा है औ' तुने तूल सा है, नव किसलय सा है स्नेह के उत्स सा है। सदय हृदय ऊधो श्याम का है बड़ा ही, अहह हृदय मा के तुल्य तो भी नहीं है।-हरिऔध यहाँ माधव के हृदय उपमेय के बड़े होने के कारण स्नेह के उत्स आदि तो कहे गये हैं, पर उपमान मा के हृदय के तुल्य न होने का कारण नहीं कहा गया है। ज्ञान योग से हमें हमारा यही वियोग भला है। जिसमें आकृति, प्रकृति, रूप, गुण, नाट्य, कवित्व कला है। -गुप्त यहाँ उपमेय का ही उत्कर्ष कहा गया है, उपमान ज्ञान-योग के हीन होने का कारण उक्त नहीं है। ४ केवल उपमान के अपकर्ष के कारण का कहा जाना- मिरा मुखर तनु अरध भवानी, रति अति दुखित अतनुपति जानी विष बारुनी बन्धु प्रिय जेही, कहिय रमा सम किमु वैदेही ।-तु०. यहाँ उपमाम गिरा, भवानी, रति और रमा उपमानों के अपकर्ष के कारणों. का उल्लेख है ; पर वैदेही के उत्कर्ष का कारण नहीं लिखा गया है।