पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८५

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४०५ गम्यौपम्याश्रय व्यतिरेक के उल्लिखित उदाहरणों में कहीं शाब्दो, कहीं प्रार्थो और कहीं शाक्षिप्त उपमा द्वारा उत्कर्ष तथा अपकर्ष का व्यतिरेक निर्दिष्ट हुआ है। आचार्यों ने उपमेय की अपेक्षा उपमाना के उत्कर्ष में भी व्यतिरेक माना है । विजन निशा में सहज गले तुम लगती हो फिर तरुवर के, आनन्दित होती हो सखि नित उसकी पदसेवा कर के, और हाय ! मैं रोती फिरती रहती हूँ निशि दिन वन वन, नहीं सुनाई देती फिर भी वह वंशी-ध्वनि मनमोहन ।-पंत इसके पूर्वाद्ध में वणित उपमान की उत्तराद्ध में वर्णित उपमेय को अपेक्षा- विशेषता दिखायो गयी है। १६ सहोक्ति (Connected Description) 'सह' अर्थ-बोवक शब्दों के बल से जहाँ एक हो शब्द दो अर्थों का बोधक होता है वहाँ सहोक्ति अलंकार होना है। फूलन के सँग फूलि है रोम परागन से संग लाज उड़ाइहैं । पल्लव पुज के संग अली हियरो अनुराग के रंग रंगाइहैं । आयो वसंत न कंत हितू अब बीर बदौंगी जी धीर धराइहैं। साथ तरून के पातन के तरुनीन के कोप निपात है लाइहैं । -दास यहाँ साथ ओर संग शब्द द्वारा फूलि है आदि का सम्बन्ध कहा गया है । निज पलक मेरी विकलता साथ ही, अवनि से उर से मृगेक्षणि ने उठा। एक पल निज शस्य श्यामल दृष्टि से, स्निग्ध कर दी दृष्टि मेरी दीप से। -पंत न्यहाँ साथ ही शब्द के बल से उठने का एक सम्बन्ध कथित है। आठवीं छाया गम्यौपम्याश्रय (विशेषण-वैचित्र्य आदि) चौथे विशेषण-वैचित्र्य में समासोक्ति और परिकर दो अलंकार आते हैं । २० समासोक्ति ( Speech of Brevity ) प्रस्तुत के वर्णन द्वारा समान विशेषणों से श्लिष्ट हों वा साधारण- जहाँ अप्रस्तुत का स्फुरण हो वहाँ समासोक्ति अलङ्कार होता है।