पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८९

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४०६ गम्यौपम्याश्रय के शेष भेद उसके घर के सभी भिखारी ? यह सच है तो जाऊं।। पर क्या माँग तुच्छ विषयों की भिक्षा उसे लजाऊँ ?-गुप्त यहाँ न जाने का रूप कार्य का निषेध कारण-निर्देश करके प्रकट किया गया है। इससे यहाँ भी पूर्ववत् कारण-निबन्धना अप्रस्तुत-प्रशंसा है । (३) सामान्यनिबन्धना-अप्रस्तुत सामान्य कथन के द्वारा प्रस्तुत विशेष का बोध कराना। री आवेगा फिर भी बसन्त, जैसे मेरे प्रिय प्रेमवन्त । दुःखों का भी है एक अन्त, हो रहिये दुर्दिन देख मूक । गुप्त यहाँ प्रस्तुत इस सामान्य कथन से 'सबै दिन नाहि बराबर जात' इस प्रस्तुत- विशेष का कथन किया गया है। जगजीवन में है सुख दुख सुख-दुख में है जग-जीवन हैं बँधे विछोह मिलन दो देकर चिर स्नेहालिंगन ।-पत इस पद्य में भी वही बात है। सर्वसाधारण से सम्बन्ध रखने के कारण सामान्य है। (४) विशेषनिबन्धना-अप्रस्तुत विशेष के कथन से प्रस्तुत सामान्य का बोध कराना। एक दम से इन्दु तम का नाश कर सकता नहीं। किन्तु रवि के सामने तम का पता चलता नहीं।-रा० च० उपा० इस अप्रस्तुत विशेष कथन से 'दुष्ट उग्रता को नीति से हो मानते हैं। इस "प्रस्तुत सामान्य का कथन किया गया है । 'दास' परस्पर प्रेम लखो गुन छीर का नीर मिले सरसातु हैं नीरै बेंचावत आपने मोल जहाँ-जहाँ जाय के छीर बिकातु हैं। पावक जारन छीर लगै तब नीर जरावत आपनो गात हैं। नीर की पीर निवारन कारण छोर घरी ही घरी उफनातु हैं । यहाँ प्रस्तुत छोर-नोर के विशेष वर्णन से कवि इस सामान्य प्रस्तुत का बोध कराता है कि प्रीति हो तो नीर-छोर जैसी हो । ___ 'चन्द्र-सूर्य' और 'नीर-छोर' विशेष इसलिये है कि इनका सम्बन्ध इनके ही साथ है, अन्य से नहीं है। (५) सारूप्यनिबन्धना-प्रस्तुत का कथन न कहकर तद्रूप अप्रस्तुत का वर्णन करना। सागर के लहर-लहर में है हास स्वर्णकिरणों का। सागर के अन्तस्तल में अवसाद अवाक कणों का।-पंत