पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४९०

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काव्यदपंगाः ___ यहाँ अप्रस्तुत सागर के वर्णन से प्रस्तुत धौर, वौर, गम्भीर व्यक्ति का वर्णन है, जो दुख-सुख में समान रहता है । सागर की चंचलता या अवसाद उसके कार्य नहीं, बल्कि लहरों और कणों का है। भौरा ये दिन कठिन हैं दुख सुख सही सरीर । जब लग फूल न केतकी तब लगि विलम करीर ।-प्राचीन इसमें प्रस्तुत भौरे के वर्णन से प्रस्तुत दुखी जन का बोध किया गया है। सारूप्य-निबन्धना को अन्योक्ति अलकार भी कहते हैं। २५ अर्थान्तरन्यास ( Corroboration) जहाँ विशेष से सामान्य का या सामान्य से विशेष्य का साधर्म्य वा वैधर्म्य के द्वारा समर्थन किया जाय वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। १ विशेष का सामान्य से साधर्म्य द्वारा समर्थन । जगत की सुन्दरता का चॉद सजा लांछन को भी अवदात सुहाता बदल-बदल दिन-रात नवलता ही जग का आह्लाद । —पन्त इसमें चौथे चरण की सामान्य बात से पूर्व की विशेष बात का समर्थन है । प्रबला दुष्टा जान ताड़का को तुम मारो, स्त्री-हत्या का पाप तनिक भी नहीं विचारो। क्यों न सिहिनी और सर्पिणी मारी जावे ? जिससे देश समाज अकारण ही दुख पावे ।-रा० च० उपा० यहाँ सर्पिणी के मारने की सामान्य बात से विशेष ताड़का के मारने की बात को पुष्टि की गयी है। २ विशेष से सामान्य का साधर्म्य से समर्थन- सानुनय से दुष्ट सीधे मार्ग पर जाते नहीं, हाथ में आते न जब तक दण्ड वे पाते नहीं । तप्त हो जब तक घनों की चोट खाता है नहीं, काम में तब तक हमारे लौह आता है नहीं।-रा० च० उपा इसमें लौह की विशेषता से सामान्य दुष्ट के दण्ड की बात का समर्थन है । सुनकर गजों का घोष उसको समझ निज अपयश-कथा, उनपर झपटता सिंह-शिशु भी रोष कर जब सर्वथा। फिर व्यूह-भेदन के लिए अभिमन्यु उद्यत क्यों न हो, क्या वीर बालक शत्र का अभिमान सह सकते कहीं।-गुप्त इसकी तीसरी पंक्ति को विशेष बात का चौथी पंक्ति की सामान्य बात से समयन किया गया है।