पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मूल पुस्तक में वे ही विषय आवे, जिनका विस्तृत वर्णन 'काव्यालोक' के अनेक खण्डों में होगा। प्रकाशित द्वितीय खण्ड के विषय संक्षेपतः जैसे इसमें आ गये हैं वैसे ही अप्रकाशित खण्डों के विषय आये है। किन्तु 'काव्यालोक' में इनके क्या रूप होंगे, अभी नहीं कहा जा सकता । 'दर्पण' को छायानों में रस के अनेक विषयों के लेने का लोभ संवरण न कर सका। इससे पुस्तक का कलेवर बढ़ गया और इसका परिणाम यह हुआ कि अलंकार के विषयों और उनके उदाहरणों को कम कर देना पड़ा । 'साधारणीकरण' और 'लौकिक रस और अलौकिक रस' ये लेख के रूप में विस्तृत रूप से प्रकाशित हुए थे। उन्हें ज्यों का त्यों ले लिया गया है । यद्यपि पहला छह छायाओं में बांट दिया गया है तथापि वे पुस्तक की अन्य छायाओं के अनुरूप नहीं हुए हैं। 'काव्यदर्पण' में साहित्यशास्त्र के सभी विषयों का यथायोग्य प्रतिपादन किया गया है। प्राचीन विषयों के अतिरिक्त नये विषय भी इसमें आये हैं। वे आधुनिक कहे जा सकते हैं। प्राचीन काव्यशास्त्र में विशेषतः इनका उल्लेख नहीं पाया जाता। कितने प्राचीन विषयों को नया रूप दिया गया है या उनका नये दृष्टिकोण से स्पष्टीकरण किया गया है । प्राचीन विषयों का नया प्रतिपादन मतभेद का कारण हो सकता है। आलंबन-विभाव में नायिका और नायक के अनेक भेदों का प्रदर्शन छोड़ दिया गया है; किन्तु नवीन काव्यों में इनका प्रभाव नहीं है । कुछ ऐसे सोदाहरण भेद यथास्थान आ गये हैं। आधुनिक उदाहरणों के साथ इस विषय पर एक अन्य पुस्तक के संकलन का विचार है । रसप्रकाश में २२ संख्या तक विषय निर्धारण है और ३ से ५० संख्या तक रसविवेचन है। इससे इनको दो प्रकाशों में विभक्त करना चाहता था। पर शीघ्रता में ऐसा न हो सका, ध्यान बँट गया | काव्धगत रससामग्री और रसिकगत रससामग्री का पृथक्करण कुछ नया-सा प्रतीत होगा। आशा है, रस के विस्तृत विवेचन से साहित्य-रस-रसिक तथा साहित्य-शिक्षार्थी अधिक लाभ उठावेंगे। ___अलंकारों के लक्षण-निर्माण और उदाहरण-समन्वय बड़ा ही विषम और जटिल व्यापार है । कुछ अलकार ऐसे हैं जिनका स्वरूप मेद इतना सुक्ष्म है कि बुद्धि काम नहीं करती। अनेक उदाहरण ऐसे हैं जिनसे पढ़ते ही ऐसा ध्यान में श्राता है कि यह तो अनुक अलंकार का भी उदाहरण हो सकता है । जिन अलंकारो के मँजे हुए उदाहरण परम्परा से एक ग्रन्थ से दूसरे ग्रन्थ में उद्धृत होते चले आते हैं उनके लिए तो एक बचाव है पर आधुनिक उदाहरणों के लिए यह भी सम्भव नहीं। इस दशा में हम अपने निर्वाचित नवीन उदाहरणो की यथार्थता के सम्बन्ध में साधिकार कुछ कह भी कैसे सकते हैं। फिर भी उनकी परख में कम माथापच्ची नही की गयो