पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५०३

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एम ४२३ यहाँ पौले से श्याम और श्याम से सेत होना कार्य कारण की विषमता है पर बह पांचवीं विभावना से प्रायः मिल जाता है । टिप्पणी-विरोधाभास में जो विरोध रहता है वह आभास मात्र होता है, किन्तु विषम अलंकार में विरोध सत्य होता है। असंगति अलंकार में कार्य-कारण को एक्कालिक भिन्न-भिन्न स्थान पर असंगति वर्णित होती है और विरोध में जो विरोध है वह एक स्थान में ही होता है । ३५ सम (Equal) यह विषम के विपरीत है। इससे इसकी गणना इस श्रेणी में की गयी है। इसके तीन भेद हैं। १ प्रथम सम-यथायोग्य सम्बन्ध वर्णन को प्रथम सम अलंकार कहते हैं। धन्य उसे है हमको तुमको जिसने सुघर बनाया, हमें मिलाकर और सुगन्धित स्वर्ण मनो दिखलाया। हो अभिराम राम से भी तुम इसमें नहीं कसर है, तुम्हें छोड़कर और न कोई मेरे लायक वर है।-रा० च० उ० सम अलंकार का यह अपूर्व उदाहरण है। अन्डष्टि से समानता प्रतीत भले ही न हो, पर समता के वन मे अपूर्व चमत्कार है। राम सरिस बर दुलहिन सीता। समधी दशरथ जनक पुनीता। जैसे सम अलंकार में कोई चमत्कार नहीं है। २ द्वितीय सम-कारण के अनुकूल जहाँ कार्य का वर्णन किया जाय वहाँ यह अलंकार होता है। राघव तेरे ही योग्य कथन है तेरा, दृढ़ बाल हठी तू वही राम है मेरा। देखें हम तेरा अवधि मार्ग सब सहकर, कौशल्या चुप हो गयी आप यह कह कर । गुप्त यहाँ गम के योग्य ही उनके कथन का-अयोध्या लौट न चलने का वर्णन है। ३ तृतीय सम-विना विघ्न कार्यसिद्धि होने के वन में यह भेद होता है। हे राम! तुम हो धन्य जग में धर्म के अवतार हो। तुम ज्ञान के आगार हो विज्ञान के भंडार हो।