पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१

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प्रभुत्व-विस्तार कर लेती है। नाटकीय दृश्यों में नृत्य आदि देखने तथा संवाद आदि सुनने से मन में स्वयं वैसा करने की जो प्रवृत्ति होती है, उसे अनुकरणवृत्ति कहते है। इन दोनों-देखना-सुनना और उनका अनुकरण करना-का सम्बन्ध कारण-कार्यरूप से है। मानव-हृदय में जन्म से ही अनुकरण की प्रवृत्ति होती है। अनुकरणनित श्रानन्द का अनुभव सभी जातियां सभी काल मे करती हैं, ऐसा अरस्तू का विचार है। उसके कहने का सारांश है कि "सभी प्रकार के काव्य, नाटक, संगीत आदि विशेषतः अनुकरण ही है।"१ "नृत-चित्र आदि कलाओं में भी अनुकरण की कार्य- कारिता स्पष्ट प्रतीत होती है और उनमे तीनों लोको का अनुकरण देखा जाता है ।२ इसी अनुकरण वृत्ति की प्रबलता जब देह-मन में होती है तब वाव्य वा नाटक का जन्म होता है। भारतीय विचारकों ने भी अपने-अपने अलंकार के ग्रन्थो में नाटकों तथा नाटकीय वस्तुओं की आलोचना के अवसर पर अनुकरण-वृत्ति का उल्लेख किया है। सृष्टि में काव्य का एक चिरंतन प्रवाह है। इस प्रवाह में कवि-हदय का योग तीन प्रकार का होता है-अनुकरण, अनुसरण और संग्रहण । इन तीनों साधनों में अनुकरण को काव्य-प्रतिभा की मंदता का द्योतक माना गया है। अनुसरण में कवि-प्रतिमा जागरूक होती है । ग्रहण में प्रतिभा का स्फुरण होता है। कवि की एक शक्ति कारवियत्री अर्थात् काव्यरचना की शक्ति है और दूसरी भाववियत्री अर्थात् भाव-ग्रहण की शक्ति है । काव्य-रचना में सृष्टि-शक्ति की अपेक्षा ग्राहक-शक्ति कम महत्त्वपूर्ण नहीं। वस्तु-जगत् के चित्र सभी को दृष्टियों में एक से आते हैं ; किन्तु सभी उन्हें एक ही प्रकार से भावजगत् की वस्तु नहीं बना सकते । कवीन्द्र रवीन्द्र ने इस ग्राहिका शक्ति को 'हृदय-वृत्ति का जारक रख' कहा है। बूचर ने इसको उत्पादन वा निर्माण करना ( Producing ) और क्रोचे ने इसीको प्रकृति का भावानुकूल अनुकरण ( idealizing imitation of nature ) कहा है। काव्यसृष्टि विशुद्ध अनुकरण में नहीं गिनी जा सकती, जैसा कि अरस्तू आदि पाश्चात्य मौचकों का सिद्धान्त है; क्योंकि काव्य-रचना में कवि की अनुभूति १. Epic poetry, Tragedy, Comedy, Dettyrambics, for the most part, the music of the flute and of the lyre-all these arey in the most general view of them ; ..."The Poetics २. यथा नृते तथा चित्रे न्यैलोक्यानुवृतिः स्मृता ।-चित्रसूत्र ३. (क) लोकवृत्तानुकरणं शास्त्रानेतमया कृतम् । -भरत . (ख) अवस्थानुकृति व्यम् । -दण्डी