पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५११

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पर्याय पा चंचल अधिकार शत्र, मित्र और बन्धु का। बुरा, भला, सत्कार किया न तो फिर क्या किया ?--अनुवाद यहाँ शत्रु, मित्र और बन्धु के साथ बुरा, भला और सरकार का क्रमशः सम्बन्ध जोड़ा गया है। रमा भारती कालिका करति कलोल असेस । विलसति बोधति संहरति जहँ सोई मम देश ।-वियोगीहरि इसमें रमा, भारती और कालिका का विजसति, बोधति, संहरति इन क्रियाओं से क्रमशः सम्बन्ध उक्त है। । अमी हलाहल मद भरे सेत स्याम रतनार । ___जियत मरत झुकि-झुकि परत जेहि चितवत इक बार । प्राचीन ___ यहाँ एक ही आँख में अमृत, विष, मद तीनों वस्तुओं, श्वेत, श्याम और लाल तीनों रगों तथा, मरना और मुक-झुक पड़ना इन तीनों गुणों का क्रमानुसार वर्णन है। इसमें एक ही श्राश्रय में अनेक प्राधेय होने के कारण द्वितीय पर्याय अलंकार भी है। पर्याय (Sequence) जहाँ एक ही वस्तु का अर्थात् एक आधेय का अनेक आधारों में होना पर्याय से वर्णित होता है वहाँ पर्याय अलङ्कार होता है। प्रथम पर्याय-जहाँ एक वस्तु के पर्याय से -अनुक्रम से अनेक स्थानों में स्थिति वणित हो वहाँ प्रथम पर्याय होता है। तेरी आभा का कण नभ को देता अगणित दीपक दान । दिन को कनक-राशि पहनाता विधु को चाँदी का परिधान ।-महादेवी यहां एक अाभा का तागों में, दिन के प्रकाश में और चन्द्रमा को उज्ज्वलता में होना वणित है। हालाहल तोहि नित नये किन बकराये ऐन । अंबुधि हिय पुनि संभुगर अब निवसत खल बैन । प्राचीन । । यहाँ एक ही हलाहल विष के समुद्र का हृदय, शिवजी का कंठ और खल के चचन रूप अनेक आधार कहे गये हैं। अलि कहाँ सन्देश भेज' मैं किसे संदेश भेजू नयनपथ से स्वप्न में मिल प्यास में धुल, प्रिय मुझी में खो गया अब दूत को किस देश भेजू।-महादेवो यहाँ एक हो श्राधेय प्रिय का क्रम से अनेक आधारों में होना वरिणत है।