पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१२

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४३२ काव्यदर्पण दूसरा पर्याय-जहाँ अनेक वस्तुओं अर्थात् श्राधेयों का एक प्राधार में होना' वर्णित हो वहां दूसरा पर्याय होता है। उसी देह में लरिकई पुनि तरुनाई जोर, विरधाई आई अजहुँ भजि ले नदकिशोर ।-प्राचीन यहां एक प्राधेय शरीर में लरिकाई श्रादि अनेक आधारों का होना वर्णित है। जहाँ लाल साड़ी थी तन में बना चर्म का चीर वहाँ। -जैसा एक का भी पर्याय देखा जाता है । __ ४७ परिवृत्ति वा विनिमय ( Barter ) पदार्थों का सम और असम के साथ विनिमय-अदल-बदल को परिवृत्ति अलंकार कहते हैं। १ सम परिवृत्ति-उत्तम वस्तु देकर उत्तम वस्तु लेना- जो देवों का भाग उसे हम सादर उनको देंगे। और ले सकेंगे जो उनसे हम कृतज्ञ हो लेंगे। गुप्त मुझको करने योग्य काम बतलाओ। दो अहो ! नव्यता और भव्यता पाओ ।-गुप्त इन दोनों में उत्तम वस्तुओं का सम अादान प्रदान है । २ सम प्रवृत्ति-न्यून वस्तु देकर न्यून वस्तु लेना- श्री शंकर की सेवा में रत भक्त अनेक दिखाते है। किन्तु वस्तुतः उनसे क्या वे कुछ भी लाभ उठाते हैं। अस्थि -माल-मय अपने तन को अर्पण वे करते हैं। मुण्ड-माल मय तन उनसे बस परिवर्तन में लेते हैं। -पोद्दार इसमें अस्थि-माल-मय-मनुष्य देह शिवजी को अर्पण करके मुण्डमालवाला' शरीर-शिव रूप प्राप्त करना वर्णिन है। हाड़ों की माला और मुण्डमाला दोनों न्यून वस्तुएँ हैं। इसमें शिवजी को एक प्रकार से प्रशंसा है, जिससे व्याजस्तुतिः भी है। ३ विषम परिवृत्ति-उत्तम के साथ न्यून का विनिमय- क्रांति हो चुकी श्रांति, मेट अब आ मै व्यजन करूंगी। मोती न्यौछावर करके, वे श्रमकण बीन धरूंगी। इसमें मोती उत्तम वस्तु के साथ, श्रमकण न्यून वस्तु का विनिनय है । कासों कहिये अपनी यह अजान जदुराय । मनमानिक दीन्हों तुमहिं लीन्हीं विरह बलाय । प्राचीन यहां भी मानिक देकर बलाय मोल लेना उत्तम से न्यून का विनिमय है ।।