पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१५

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४३५ प्रभु सौख्य दो स्वातंत्र्य का अथवा हमें अब मुक्ति दो। ___ यहाँ 'अथवा' शब्द से दोनों एक ही काल में विरोध उक्त है। यही बात नीचे की अर्घाली में भी है। जनम कोटि लगी रगर हमारी। बरौं शंभु नतु रहौं कुमारी । अथवा, नतु, न तरु, या, के, कि, किती आदि इसके वाचक हैं । ५१ समुच्चय ( Conjunction) जहाँ समुदाय का एकत्र होना वणित हो वहाँ यह अलंकार होता है। १. प्रथम समुच्चय-जहाँ एक कार्य को सिद्धि के लिए एक साधन हो पर्याप्त हो, वहाँ अन्यान्य साधनों का वर्णन होने से यह अलंकार होता है । माँ को स्पृहा का प्रण, नष्ट करूं करके सव्रण, प्राप्त परम गौरव छोड़, धर्म बेंच कर धन जोड़ -गुप्त इसमें राम-वन-गमन के लिए मा को स्पृहा ही पर्याप्त साधन हैं वहाँ पिता का 'प्रण आदि अन्यान्य साधन भी एकत्र वर्णित हैं। कृष्ण के संग ही तुम्हारा नाम होगा, धाम होगा, प्राण होगा, कर्म होगा, विभव होगा, कामना भी।-भट्ट इसमें जहां राधिका के अनन्य अनुराग का प्रदर्शन प्रथम साधन से ही हो जाता है वहाँ अन्यान्य साधनों का समुच्चय हो गया है। २. द्वितीय समुच्चय-जहां गुण-क्रिया के वा गुण अथवा क्रिया के एक -साथ वा पृथक् पृथक् वणन किया जाय वहां यह भेद होता है । आली तू ही बता दे इस विजन विना मैं कहाँ आज जाऊँ दीना, हीना, अधीना, ठहरकर जहाँ शान्ति हूँ और पाऊँ ।-गुप्त यहाँ उमिला में दीना, होना श्रादि गुणों का एकत्र काल में वर्णन है। दू और पाऊँ क्रिया का भी एक ही काल में समुच्चय है । ५२ समाधि वा समाहित (Facilitation) जहाँ अचानक और कारणों के आ पड़ने से काम सुगम हो जाय वहाँ समाधि अलंकार होता है। विनय यशोदा करति हैं गृह चलिये गोपाल । घन गरज्यो बरसा भई भागि चले नंदलाल । प्राचीन यहाँ यशोदा के विनय के समय हो धन गरज कर जो वर्षा होने लगी उससे कृष्ण के घर चलने का काम श्रासानी से हो गया।