पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१९

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४४० काव्यदपण धवल चांदनी में शुक्ला भिसारिका बनी रात सिन वस्त्र में अपने को छिपये जो आती है तो वह मोनित अलंकार का सदेह उदाहरण हो जाती है; पर चन्द्रमा को नीलिमा रात को उन्मीलित का उदाहरण बना देती है । ५७ सामान्य ( Sameness ) जहाँ प्रस्तुत और अप्रस्तुत में गुण-समानता के कारण एकात्मता का वर्णन हो वहाँ यह अलंकार होता है। भरत राम एकै अनुहारी, सहसा लखि न सके नर नारी । लखन शत्र सूदन एकरूपा, नख सिख ते सब अंग अनूपा ।-तु० यहाँ भरत-राम और लखन-शत्रुहन में भेद रहते हुए भी एकात्मता का वर्णन है। मिल गया मेरा मुझे तू राम, तू वही है मित्र केवल नाम । एक सुहृदय और एक सुगात्र, एक सोने के बने दो पात्र ।-गुप्त कौशल्या ने भेद रहते हुए भी दोनों को एक हो मान लिया। इसी सम्बन्ध का एक नीचे का अलकार है। ५८ विशेषक (Unsameness) प्रस्तुत और अप्रस्तुत में गुण-सामान्य होने पर भी किसी प्रकार भेद लक्षित हाने से विशेषक अलंकार होता है। कोयल काली कौआ काला, क्या इनमें कुछ भेद निराला। पर कोयल कोयल वसन्त में, कौआ कौआ रहा अन्त में।-अनुवाद यहाँ काक और पिक समान हैं, पर इनका भेद वपन्त में खुन जाता है। काक पिक के समान नहीं बोल सकते । ५६ तद्गुण ( Borrower) जहाँ अपना गुण छोड़कर संगो के गुण-ग्रहण का वर्णन हो वहाँ यह अलंकार होता है। यह शैशव का सरल हास है, सहसा उर से है आ जाता। . यह ऊषा का नव विकास है, जो रज को है रजत बनाता। यह लघु लहरी का विकास है, कलानाथ जिसमें खिंच आता।-पंत यहाँ रज अपना रंग छोड़कर उषा का रंग ग्रहण करता है। ___ अधर धरत हरि के परत ओठ दीठि पट जोति: हरित बॉस की बांसुरी इन्द्रधनुष रंग होती।-बिहारी यहाँ हरित बांसुरी का ओठ, दृष्टि श्रोर पट के लाल, उज्जबन और पौत रंग ग्रहण करना वणित है।