पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५२३

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काव्यदर्पण यहाँ कैकेयी ने जिस भाव से 'वात्सल्य' शब्द का प्रयोग किया है, भरत ने उसके अन्यार्थ की कल्पना करके उत्तर दिया है। ६५ मूक्ष्म (Subtle) जहाँ किसी संकेत - चेष्टा आदि और आकार से लक्षित रहस्य को किसी युक्ति से सूचित किया जाय वहाँ सूक्ष्म अलंकार होता है। सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे । बिहँसे करुणा ऐन चितै जानकी लखन तन ।-तुलसी यहाँ राम के हँसने से यह भाव प्रकट होता है कि केवट के भाव को तो मैं • समझ हो गया, तुमलोग भी समझ गये होगे। 'छत्रपती' भनि ले मुरली कर आइ गये तह कुजबिहारी, देखत ही चख लाल के बाल प्रबाल की माल गले बीच डारी। लाल नेत्र देखते ही नायिका ने यह जान लिया कि कृष्ण रात्रि में अन्यत्र जगे हुए थे। इस रहस्य को उसने प्रवाल को माला गले में डालकर खोल दिया। ६६ स्वाभावोक्ति (Natural Description) बालक आदि की स्वाभाविक चेष्टा आदि के चमत्कारक वर्णन में • स्वाभावोक्ति अलंकार होता है। मॉ ! अलमोड़ में आये थे जब राजर्षि विवेकानन्द, मग में मखमल बिछवाया दीपावलि की विपुल अमंद । बिना पाँबड़े पथ में क्या वे जननि नहीं चल सकते हैं ? दीपावलि क्यो की ? क्या वे माँ ! मंद दृष्टि कुछ रखते हैं ?-पंत इसमें बाल-स्वभाव-सुलभ आशंका का चमत्कारक वर्णन है। चढ़ कर गिर कर फिर उठ कर कहता तू अमर कहानी। गिरि के अंचल में करता जित कल्याणी वाणी ।-मा० आत्मा झरने का यह स्वाभाविक वर्णन है । ६७ भाविक (Vision) जहाँ भूत और भविष्य के भावों का वर्तमान की भाँति वर्णन किया जाय वहाँ यह अलंकार होता है। अरे मधुर हे कष्ट पूर्ण भी जीवन की बीती घड़ियां, जब निःसंबल होकर कोई जोड़ रहा विखरी कड़ियाँ ।-महादेवी .. इसमें भूत का वर्तमान के समान वर्णन है।