पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५३०

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विकस्वर ४५१ यह दृश्य देखा कवि चन्द ने तो उसकी फड़की भुजायें कड़ी तड़की कवच की।-आर्यावर्त युद्धार्थ साधारण उद्योग करते ही इतने बड़े भारी संगठन के हो जाने से कवि चन्द को प्रहर्षण हुश्रा। ७५ विषादन ( Despondency) इच्छित अर्थ के विपरीत लाभ होने को विषादन अलंकार कहते हैं। श्री राम का अभिषेक होगा कुछ घड़ी में आज ही, इस ध्यान-वारिधि में मनो सीता चुभकती सी रही । आये वहाँ पर राम भी पर आस्य उनका खिन्न था, था क्लिन्न भी वह स्वेद से वह नित्य से कुछ भिन्न था। स्वामी-दशा को देख सीता काठ की सी हो गई। हा खो गई उसको प्रमा चिन्ताग्नि में वह सो गई।-रा० च० उ० 'का सुनाइ, विधि काहि दिखावा' होने से विषादन की विशेष मात्रा इसमें वर्तमान है। निकट मैं अपने रखना तुम्हें-दुखद है समझना रघुनाथ ने । जनकजे निजनाथ दिनेश से अब रहो वन की वनचारिणी।-रा० च० उ. ___ जहाँ तपोवन-दर्शन की लालसा से लालायित सीता को श्रानंद का पारावार नहीं था वहाँ लक्ष्मण द्वारा वनवास को रामाज्ञा सुन उसपर वज्रपात-सा हो गया। ७६ विकस्वर (Expansion) विशेष का सामान्य से समर्थन करके फिर सामान्य का विशेष से समर्थन करना विकस्वर अलंकार है। अर्थान्तरन्यास से- गुण गेह नप में एक दुगुण आ गया तो क्या हुआ ? जैसे सुरों सँग राहु पूजा पा गया तो क्या हुआ ? रत्नान्धि खारा है तदपि सम्मान मिलता है उसे संसार में आकर भला लांछन न लगता है किसे?-रा० च० उ० राजा में एक दुगुण का श्राना विशेष कथन है-रत्नाब्धि खारा है, इसके द्वारा सका समर्थन है । फिर इस सामान्य कथन का समर्थन चौथी पंक्ति के अर्थान्तरन्यास से किया गया है। उपमा से- रत्नखान-हिमवान-हिम होता नहीं कलंक । छिपे गुणों में दोष इक ज्यों मृगांक में अंक ।-अनुवाद