पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५८

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हो हैं। रीति-गुण भी अर्थ से असम्बद्ध नहीं कहे जा सकते । कहना चाहिये कि बात को करामात तभी है जब वह सार्थक हो । निरर्थक सुनलित पदावली भी उन्मत्त प्रलाप की कोटि में ही रखी जायगी। प्राच्य आचार्यों ने तीन प्रकार के अर्थ माने हैं-१ वाच्य, २ लक्ष्य और ३ व्यंग्य ।'लेडी वेल्वी ने भी यही स्थिर किया है-"सभी प्रकार की अभि- व्यक्तियों में एकमात्र यही गुरुतर प्रश्न उपस्थित होता है कि इस विशेष धर्म क्या है ? पहला है वाच्यार्थ, जिन्न अर्थ में यह प्रयुक्त होता है । दूसरा है लक्ष्यार्थ, इससे प्रयोगकर्ता का अभिप्राय समझा जाता है । और, सर्वापेक्षा आवश्यक एवं अत्यधिक व्यापक व्यंग्यार्थ वा श्वनि है जो चरम अभिप्रेत है ।"२ संस्कृत में व्यञ्जित, ध्वनित, प्रतीत, अवगत, सूचित अर्थ हो का महत्त्व है। उच्चरित वाक्य का विचार रिचाड्स ने चार दृष्टिकोणों से किया है । उनके नाम है-१ सेंस (Sense ) अर्थ, २ फीलिग ( Feeling ) भाव, ३ टोन ( Tone ) सुर वा ढंग और ४ इन्टेंशन ( Intention ) अभिप्राय ।३ सेन्स और फीलिग-अथं और भाव, दोनों वाच्यार्थ के अन्तर्गत श्रा जाते हैं। क्योंकि वाच्यार्थ के भौतर बुद्धिगत अर्थ और हृदयगत भाव, दोनों का समावेश हो जाता है। कहने का ढंग और उसका समझना वक्ता और बोद्धा से सम्बन्ध रखने के कारण एक प्रकार के वाच्यार्थ हो हैं; क्योंकि वाच्यार्थोपलब्धि के लिए ही वक्ता ढंग, सुर वा प्रकृति को अपनाता है। जहां वक्ता और बोधव्य का वैशिष्ट्य रहता है। वहाँ व्यञ्जना मानी जाती है, इन्टेन्शन लक्ष्यार्थ को भी लक्ष्य में लाता है । व्यंग्याथ को spirit, suggested sense, significance, व्यंजना' शक्ति को power of suggestion, evocation in the listener और व्यंजना व्यापार को suggestion कहते है। शुक्लजी लिखते हैं-"अर्थ से मेरा अभिप्राय वस्तु वा विशेष से है । अर्थ चार प्रकार के होते है-प्रत्यक्ष, अनुमित, श्राप्तोलब्ध और कल्पित । प्रत्यक्ष की बात' हम छोड़ते हैं। भाव या चमत्कार से निःसंग विशुद्ध रूप में अनुमित अर्थ का क्षेत्र १. अर्थों वाच्यश्च लक्ष्यश्च ब्यंग्यश्चेति त्रिधा मतः। सा० दर्पण २. The one crucial question in all expression is its special property, first of sense, that in which it is used, then of mea- ning as the intention of the user; and most far reaching and momentous of all, implication of ultimate significance. -Significs and Language.. ३. Practical Criticism. ४. इन्दौर का भाषण