पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/६५

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के कारण इस साहित्यविद्या को साहित्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, काव्यानुशासन श्राद समाख्या प्राप्त हुई है। __"रम्य, जुगुप्सित, उदार अथवा नीच, उग्र मनोमोदकर, गहन वा विकृत वस्तु, यही क्यों, अवस्तु भी, कहिये कि ऐसा कुछ भी नहीं जो भावक कवि को भावना से भाव्यमान होकर रख-भाव को प्राप्त न हो।" ___पर ऐसे उदार श्राज के साहित्यिक नहीं हैं। वे कहते हैं कि 'आज के युग में शोषकों के अत्याचार, प्रवंचना, शोषितों की वेदना, विकलता, व्यर्थता तथा किसान-मजदूरों का जीवन ही काव्य के विषय होने चाहिये।' कविता के विषय हो, इनके काव्य-विषय होने का कौन निषेध करता है ? पर, हमारा नम्र निवेदन यह है कि इस सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ की उक्तियो को ध्यान में अवश्य रक्खें- 'लेखनी के जादू से, कल्पना के पारसमणि के स्पर्श से मदिरा का अड्डा भी सुधापान की सभा हो सकता है ; किन्तु वह होना चाहिये...."रिलिज्म के नाम पर सस्ती कविताओं की बड़ी भरमार है। पर आर्ट इतना सस्ता नहीं है । धोबी घर के मैले कपड़ों को लिस्ट लेकर भी कविता हो सकती है।....."किन्तु विषय-निर्वाचन से रियलिज्म नहीं होता। रियलिज्म का प्रकाश लेखनी के जादू से ही होता है। विषय-निर्वाचन की बात लेकर झगड़ना नहीं चाहिये ।" इसका समर्थन शापेनहार इस प्रकार करते हैं कि "कुछ ही वस्तु सुन्दर हों सो बात नहीं, अपने में प्रत्येक वस्तु सुन्दर है। किन्तु संसार की प्रत्येक वस्तु सुन्दर होने योग्य, एक रूप में हो केवल नहीं, बल्कि अनेक रूपों में होने योग्य हैं, यदि हमारी प्रतिभा काम करे, यही लेखनी का जादू है। श्रानन्दवर्धन कहते हैं कि "रस आदि चित्तवृत्ति-विशेष ही है। ऐसी कोई षस्तु नहीं जो चित्तवृत्ति की विशेषता को न प्रकट करे।"3 प्राचीन तथा नवीन काव्य-संसार तुच्छ-से-तुच्छ विषयों पर की गयी कविता से शून्य हो, यह कैसे कहा जा सकता है जब कि भारतीय प्रात्मा' तक 'पत्थर की १. रम्यं जुगुप्सितमुदारमथापि नीचमुग्रं प्रसादि गहन विकृतं च वस्तु । यदाप्यवस्तु कविभावकभाव्यमान तन्नास्ति यन्त्र रसभावमुपैति लोके ।-का० २...........there are not certain beautiful things : beautiful each in its own certain way, but everything in the world is capable of being found beautiful perhaps in many differnt ways, if only we have the necessary genius. The Theory of Beauty .. ३. चित्तवृत्तिविशेषा हि रसादयः । न च तदस्ति वस्तु किंचित् यम्न चित्तवृत्ति- जनयति ।