पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/६६

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५३ मील पर कविता लिखते है। वस्तुतः बात ऐसी है कि विषय से कविता नहीं झेती, कविता से विषय कविता का आकार धारण करता है। विषय कवि-प्रतिभा से ही प्रतिभासित हो सकते है। फिर भी कविता के विषय सुन्दर हों तो अच्छा । क्योकि सुन्दर और उपयुक्त विषय कविता को और भी चमका देते हैं। यो तो देखने में वस्तु और विषय एक-से प्रतीत होते हैं। पर दोनों भिन्न हैं। वस्तुये लौकिक होती हैं। क्योंकि वे प्रायः जागतिक पदार्थ होती है। पर विषय जागतिक भी हो सकते हैं और अलौकिक भी। दृश्यरूप में भी हो सकते हैं और अदृश्य-रूप में भी। यद्यपि वस्तु की व्यापक व्याख्या की लपेट में सभी कुछ श्रा सकता है, फिर भी वस्तु विषय की समकक्षता नहीं कर सकती। ___ वस्तु और विभाव में भी बड़ा अन्तर है । वस्तुएँ लौकिक है और विभाष अलौकिक । वस्तुयें विभाव तभी हो सकती है जब कि कवि रस-भाव उत्पन्न करने का रूप उन्हें दे देते हैं अर्थात् कवि-कौशल से वा कवि के चित्त की भावना से विभावित होकर वस्तुएँ ऐसी हो जाती है जो सहृदयों के रसोद्रेक में समर्थ होती है। इसी दशा में उनका नाम विभाव होता है। वस्तुयें विभाव के मूल वा आदि रूप कही जा सकती हैं। कवि-मानस के व्यापार-विशेष से वस्तुयें शब्दों में समर्पित होकर विभाव के नाम से अलौकिकता को प्राप्त कर लेती हैं। यद्यपि जड़ और चेतन की पृथक्-सत्ता मान्य है तथापि इनमें एक प्रकार का सम्बन्ध माने बिना निर्वाह नहीं । कारण यह कि चन्द्रोदय से हमें श्राह्लाद होता है। दुर्गम पथ में हम भयभीत होते हैं। मानव-प्रकृति पर जड़ जगत् के प्रभाव का यह प्रत्यक्ष निदर्शन है। अतः, यह मानना होगा कि मानव चित्तवृत्ति से जड़ जगत् का घनिष्ठ सम्बन्ध है । यह सम्बन्ध कार्य-कारण-रूप है । हमारी परिवत्तनशील चित्तवृत्तियाँ इस जड़ जगत् के कार्य हैं और जड़ जगत् कारण। इन कारणों का वर्णन जब कवि अपने काव्य में करता है तब इनका नाम विभाव हो जाता है । विभाव और रूप-रचना वस्तु का काव्यगत रूप ही विभाव है। कहा है कि “जो सामाजिकगत रति आदि भावो को विभावित अर्थात् प्रास्वाद-रूपी अंकुर के योग्य बनाते है वे विभाव है।"१ यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि विभाव और भाव का सम्बन्ध अविच्छिन्न है। विभाव और भाव से रूप और रस का ही बोध होता है और रूप ही रस-सृष्टि करता है, या रस को जागृत करता है। १. विभाव्यन्ते भारवादांकुरप्रादुर्भाययोग्याः क्रियन्ते सामाजिकरत्यादिभावाः एमिः इति विमावा उच्यन्ते । -सा दर्पण