पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/६८

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रूप-रचना के सम्बन्ध में सबसे बड़ी बात है औचित्य का विचार। कहा है कि "औचित्य के अतिरिक्त रसभङ्ग का और कोई कारण नहीं है । प्रसिद्ध औचित्य- निबन्धन रसतत्त्व की परम उपनिषत् है"१ अर्थात् काव्यशास्त्र का परमार्थ है । अरस्तू भी यही कहते है कि “घटना में ऐसी कोई बात न होनी चाहिये जो युक्ति वा प्रतीत के परे हो।"२ गरांश यह कि कविता में आवेगमय अनुभूति के ऊपर कल्पना-शक्ति के काय के अतिरिक्त, बुद्धि, विवेक, बहुज्ञता तथा बहुदर्शिता का उपयोग नितान्त आवश्यक है। इसीसे सुन्दर रूपसृष्टि संभव है। उत्तम रस के आश्रय में ही उत्तम रूप की सृष्टि होती है और उत्तम रूप के विभाव ( बालंबन ) में ही उत्तम रस का प्रकाश होता है। इसीसे कविगुरु कहते हैं कि “साहित्य-रचना में रूप-सृष्टि का श्रासन अनुभव विभावना का व्यापार केवल विभाव को ही लेकर नहीं चलता। उसमें अनु- भाव भी शामिल है। बालबन और उद्दीपन विभाव रूप कारण के जो कार्य कहे जाते है, वे काव्य-नाटक मे अनुभाव शब्द द्वारा विख्यात हैं। अनु अर्थात् कारण- समूह के पीछे जिनका भाव अर्थात् जिनकी उत्पत्ति होती है, वे अनुभाव हैं । विभाव समूहों के अन्तर्गत भाव का जो अनुभव कराते हैं वे भी अनुभाव हैं ।” यों भी कह सकते हैं कि लौकिक भाव या चित्त-वृत्ति को अपेक्षा करके इनकी उत्पत्ति होती है। ___ व्यावहारिक जगत् में देखा जाता है कि जब कभी हमारे हृदय में क्रोध आदि भावो में से कोई जाग उठता है तो उसके साथ ही शारीरिक क्रिया भी (Physical modification) दीख पड़ती है। क्र द्ध व्यक्ति की आँखें लाल हो जाती हैं, शिरायें स्फीत हो जाती है, नासारध्र स्फुरित हो उठते हैं, मुटियाँ बँध जाती हैं। क्रोधाविष्कार के साथ ये शारीरिक विकार अवश्यभावी हैं। ये क्रोध के अनुभाव हैं । हाउसमैन ने अनुभाव के प्रभाव से प्रभावित होकर ही यह कह डाला था कि "मुझे तो कविता सचमुच अन्तःकरण की अपेक्षा शारीरिक ही अधिक प्रतीत होती है ।"४ ___. “अनौचित्यादृते मान्यत् रसभङ्गस्य कारणम् । ... प्रसिद्धौचित्यबन्धस्तु रसस्योपनिषत्परा । ध्वन्यालोक २. 'Within the action there must be nothing irrational. - ३. यानि च कार्यतया तानि अनुभावशब्देन । अनु पश्चाद्भावः उत्पत्तियेषाम् । अनुभावयन्ति इति वा व्युत्पत्तः। रसगंगाधर ४. Poetry indeed seems to me more physical than inter lletual. The name and nature of Poetry.