पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/७३

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जन्मान्तरवादी इस वासना को पूर्व जन्म का संस्कार मानते हैं । कालिदास का एक श्लोक है जिसका भाव है-रम्य दृश्य को देखकर वा मधुर शब्द सुनकर सुखी मनुष्य भी जो उपयुत्सुक-व्याकुल हो उठता है उसका कारण यही है कि वह निश्चय ही भाव वा वासना-रूप में स्थिर जन्मान्तर के प्रेम-प्रसंग का चित्त से अनजाने ही स्मरण करता है। इसमें जन्मान्तर की बात स्पष्ट है। हंस-पदिका गाती है। उसके उस संगीत से दुष्यन्त का चित्त प्रसन्न होने की अपेक्षा उत्कठित हो उठता है । दुर्वासा के शाप के कारण वे यह सोच न सके कि किस प्रेमिका से मेरा विरह-विच्छेद हुआ है। फिर भी वे सुखी मनुष्य के उत्कंठित होने का कारण समान अनुभूति को बताते है, जिससे वासना जागरित हो जाती है और पूर्वानुभूत सुख का स्मरण हो पाता है। वे चाहते है स्मरण करना, पर होता नहीं ; यही अबोधपूर्वक स्मरण वासना वा संस्कार का कार्य है। फ्रायडवादी कहते हैं कि मधुर शब्द सुनकर भी जो सुखी जीवन बेचैन हो उठता है उसका कारण यह है कि वह अपने अचेतन में स्थिर जन्म-जन्मान्तर के प्रेम भावों का स्मरण करता है। दुष्यन्त के चेतन मन को शकुन्तला-वियोग का पता नहीं ; पर उसके अचेतन मन में यह भाव भरा है, जो उसके चेतन मन पर अज्ञात रूप से प्रभाव डाल रहा है। फ्रायड के मत से भी जन्मान्तरवाद, संस्कार और वासना की बात सिद्ध होती है । रस काव्य का चरम फल रस ही है, क्योंकि उसका परिणाम सहृदयों को रस. चर्वण वा रसानुभूति ही है। इस रस का श्रास्वादन वहिरिन्द्रियों से संभव नहीं। साहित्य-रस का उपयुक्त रसनेन्द्रिय साहित्यिकों का अन्तरिन्द्रिय है-अनुभूति- प्रवण चित्त है। ___ भाषा में प्रकाश करने का उद्देश्य ही है कि पाठक और श्रोता उससे अानन्द लाभ कर वा उनके जीवन का कोई उद्देश्य सिद्ध हो । वत्त मान जीवन में जो कुछ हर्ष, शोक श्रादि भावों का हम अनुभव करते हैं उन भावों की प्रतिच्छवि ललित कलाश्रो में देखते हैं, सौन्दर्य-सृष्टि में उनका ही प्रतिरूप पाते है। वे प्रतिरूप अपने लौकिक भावों के प्रच्छन्न संस्पर्श से चंचल हों उठते है और जिस शाति की कामना करते है वही शांति यथार्थतः हमारे आनन्द की अवस्था है। १. रम्याणि बीक्ष्य मधुरांश्च निशम्य शब्दान् ।- पर्युत्को भवति यत्सुखिनोऽपि जन्तुः । सच्चेतसा स्मरति नूनमबोधपूर्व । भावस्थिराणि जननान्तरसौहदानि । शकुन्तला