पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/७५

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पार करके प्रशान्त ध्यान की अवस्था में पहुँच जाते है, जो इस रूपान्तर के साधन में असमर्थ हैं ; प्रत्युत् भावावेग के बवण्डर में बह जाते है। वे कितनी भी चेष्टा क्यों न करें, न तो स्वयं आनन्द उठा सकते है और न दूसरों को ही आनंद दे सकते है।"" इस सम्बन्ध में उनका अभिमत यह है कि 'क्रोचे का जो Poetic ideali zation है वही श्रालंकारिको के भाव और उनके कार्यकारण का सकल-हृदय- संवादी' विभाव और अनुभाव में परिणत होना है। क्रोचे का जो Passage from troublous emotion to the serenity of contem- plation है वहीं श्रालंकारिकों के लौकिक भावों का श्रास्वाद्यमान रस में रूपान्तर होना है । Serenity of contemplation दार्शनिक-सुलभ 'मनन' वृत्ति के ऊपर जोर देकर बात कहना है । श्रालंकारिकों के रसचर्वण की बात ने मूल सत्य को और स्पष्ट कर दिया है।' इसमें Pure poetic joy हो रस वा काव्यरस है। इसमें पाठक और कवि दोनो की ओर से रससृष्टि को बात उक्त है। रस-भाव नाट्याचार्य के इस कथन से-"न भावहीनोऽस्ति रसो न भावो रसवतिः"- भाव के बिना न तो रस ही रहता है और न रस के बिना भाव हो । इसका अन्यो- न्याश्रय स्पष्ट ही है फिर भी यह कहा जा सकता है कि रस के मूल में भाव ही है। भाव ज्ब रसावस्था को प्राप्त होता है तब वह साधारणीकरण का ही रूप होता है । अँगरेजी मैं इस दुर्बोध दार्शनिक दृष्टिकोण को बूचर के कथनानुसार भाव-समूहों का शुद्धिकरण purification of the passions, शुद्धि- प्रतिक्रिया clarifying process. संस्क्रिया को refining process कहा गया है । भावावस्था के दूर होने वा लोप होने पर ही रसावस्था होती है। इसका १. For poetic idealization is not a fiivolous embellishment, but profound penetration, in virtue of which we pass from troublous emotion to the serenity of contemplation....He who fails to accomplish this passage, but remain immensed in passionate agiration, never succeeds in bestowing pure poetic joy either upon others or upon himself whatever may be hiseftorts. -काव्यनिशासा २. In the pleasurable calm which follows when the passion is spent, emotional cure has been wrought. Poetics