पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/७९

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नहीं रह जायगी ।" इसीसे कहा गया है कि "केवल श्रत सिद्धान्त हो सौन्दर्य को समुचित मीमांसा कर सकता है।" अस्तित्व, दीख पड़ना, आनन्द या सौन्दर्य, रूप और नाम-इन पाँचों में श्रारंभ के तीन ब्रह्मरूप और शेष दो जगतरूप हैं।"२ इसी बात को लार्ड शल्सबरी लिखता है-"सौन्दर्य और ईश्वर समान और एक ही हैं । 3 सौन्दर्य के दार्शनिक मूल्य से इसका साहित्यिक मूल्य कम नहीं। इसकी समता,का कारण यह है कि रस जैसे भोक्ता के अधीन है वैसे ही सौन्दर्य भी प्रमाता-विषयो के अधीन है । दोनो का परिणाम परमानन्द लाभ हो है । राम ने लिखा है कि "सौन्दर्य वस्तुओं का स्वभाव-संजात गुण नहीं, बल्कि उनकी चिन्ता करनेवाले चित्त मे ही उसका अस्तित्व है।"४ ___ क्रीट का सिद्धान्त है कि "समग्र सौन्दर्य उसकी ही अभिव्यक्ति है, जिसे हम साधारणतः भाव या इमोशन कहते है। इस प्रकार सारा प्रकाशन ही सुन्दर है।" हस दृष्टि से देखा जाय तो सौन्दर्य और रस में कोई अन्तर नहीं। क्योंकि काव्य में उसी भाव को अभिव्यक्ति है, जिस भाव की अभिव्यक्ति चित्र आदि ललित कलाओं में है और सौन्दर्य का आनन्द जैसे स्वार्थशून्य होता है वैसे ही भावतन्मयता का आनन्द भी निरपेक्ष होता है। एक विद्वान् का कहना कि “काव्य और कला में सौन्दय का क्षेत्र ज्ञानाज्ञान की सीमारेखा से परे है, जो आत्मा की जागृत और श्रद्धजागृत अवस्था है। यह भी इनको एकता को बतलाता है। १. Only a pantheistic theory of the universe can de full justice to the beautiful. Knaghi's Philosophy of the Beautiful २. अस्ति भाति प्रिय रूपं नाम चेत्यंशपञ्चकम् । प्राद्यत्रयं जब्रह्मरूपं गद्रूपं ततो द्वयम् ।। ३. Beauty and Cod are one and the same. ४. Beauty is on quality in things themselves; but it exists in the mind which contemplates them. ५. ........ all beauty is the expression of what may be generally called cmotion and what all such expression is beautiful. The theory of Beauty. ६. The sphere of the beatiful in poetry and art is on the border land of the uncot scious and the conscious. It lies in the twiligh of the perceiving and sentient soul.