पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रीति रोति का अनुवाद Style से किया जाता है ; पर इसके लिए यह यथार्थ शब्द नहीं है।' क्योकि रीति के अन्तर्गत केवल यही नहीं, रस और अलकार भी श्रा जाते हैं। रीति-विनार मे शब्द का अधिक महत्त्व है। पर प्रत्येक शब्द का नहीं, योग्य शब्दों का ( The right vocabulary-Pater); अभिप्राय यह कि योग्य शब्दों का विचार ही गैति विचार है। इस योग्यता में अनेक बात आती हैं- वर्णनीय विषय, भावना, भाषा, औचित्य, माधुयं आदि । रचनाकार को प्रत्येक शब्द पर विचार करके उसका प्रयोग करना आवश्यक है। अनेक कामचलाऊ शब्दों के होते हुए भी योग्य शब्दों का चुनाव हो रीति का मुख्य तत्त्व है। यही शिलर का कहना है ।२ यथार्थ शब्द के लिए मधुर, सुकुमार सुन्दर शब्दों का मोह छोड़ देना पड़ेगा। गैति में वर्ण-योजना श्रावश्यक होती है, जिससे रसपरिपोष होता है। पर इसका यह अभिप्राय नहीं कि योग्य और विशिष्ट शब्द न रक्खे जयँ । कलाकार की तो यही कला है कि गति के अनुकूल भावार्थ-द्योतक शब्दों को चुने, जो काव्यकलेवर की कमनीयता को बढ़ावें। दण्डी का कहना है कि कवि की भिन्न-भिन्न रीतियों का कथन करना सभव नहीं। वर्णप्रणाली के अनेक मार्ग हैं। प्रत्येक कवि की रचना-पद्धति में अन्तर लक्षित होता है, पर उनका नामकरण सहज नहीं। 'अख, दूध, गुड़ की मधुरता में अन्तर है पर सरस्वती भी उसको बिलगाकर नहीं कह सकती। 3 भिन्न-भिन्न रोतियों के मिश्रण का अन्त पाना तो महा कठिन है। नीलकण्ठ दीक्षित ने लिखा है कि 'भाषा में अक्षरों की भरमार है, अनेक शब्द हैं, शब्दार्थ भी है ; किन्तु जिस शब्दार्थ के बिना कवि-वाणी सुशोभित नहीं होती वही मार्ग है, रचना-पद्धति वा रीति है।४ पेटर को इस उक्ति का पहले हो उल्लेख हो चुका है कि एक वस्तु वा एक विचार के लिए एक ही शब्द उपयुक्त होता है । १. It should be observed the term Riti is hardly equivalent to the Englsh word Style ....... Sanskrit Poetics २. The artist may be known rather by what he omits. ३. इक्षुक्षोरगुड़ादीनों माधुर्यस्यान्तरं महत् । तथापि न तदाख्यातुं सरस्वत्यापि शक्यते। काव्यादर्श

  • . सत्यर्थे सत्तु शन्देषु सति चाक्षरडम्बरे ।

शोभते यं विना नोक्ति स पन्थाः इति पुष्यते । गंगावतरण