पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/९०

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भामह ने रसपत् , प्रेय, ऊर्जस्वि अलंकारो में हो रस को समेट लिया है।' दण्डी ने भी रसवत् अलंकार में हो पाठों रसों को पचा डाला है । वामन ने रस की कान्ति नामक एक गुण माना है ।२ ___ सस्कृत-साहित्य में अलंकार-शास्त्र की एक बड़ी परम्परा है और सभी का एक ही उद्देश्य रहा है --काव्योत्कर्ष की साधना। इसमें अलंकार का बहुत बड़ा हाथ है। भामह कहते हैं कि 'रूसक श्रादि काव्य के अलंकार हैं। इन्हें अनेक पण्डितों ने अनेक प्रकार से समझाया है। कारण यह कि सुन्दर काव्य- भी अलकारों के बिना वैसे ही सुशोभित नहीं होता, जैसे कि बिना भूषण के वनिता का सुन्दर मुख दीपित नही होता।"3 वाल्टरपेटर ने भी कहा है कि 'ग्रहणयोग्य अलकार प्रधानतः काव्याङ्गभूत है अथवा आवश्यक है।"४ अलंकार मानवी विचारों के अधीन हैं। इससे उनके साथ साहचर्य-नियम (Laws of Association) लागू होता है । ये तीन है-१ सामीप्य (कालगत और स्थलगत ) (Law of Association by contiguity), २ साधर्म्य Similarity) और ३ विरोध (Contrast)। कार्यकरण-भाव एक चौथा नियम भी है। पाश्चात्य अलकार हमारे अलंकार के-से न तो सुलझे हुए हैं और न पराकाष्ठा को पहुँचे हुए। अंग्रेजी के Metonymy और Synecdoche तथा इनके भेद लक्षणा-शक्ति के अन्तर्गत आ जाते है। Innuendo का समावेश ध्वनि-व्यंजना में हो जाता है। Apostrophe (अनुपस्थित का उपस्थित समझकर सम्बोधन करना ) को संस्कृतवाले नहीं मानते। मानवीकरण आदि अलंकार हिन्दी में अधिक हैं। उपमा, रूपक, सार, व्याजस्तुति, श्लेष, विरोध, विषम-जैसे कुछ हो अलंकार अगरेजी में हैं। उपसंहार कवि क्या नहीं देख सकता।' अदृश्य वस्तु भी कवि के सामने प्रत्यक्ष है। जो कान से नहीं सुना जा सकता उसे वह सुन सकता है और स्वप्न-लोक के विषय १. रसबत् रसपेशलम् । २. दीप्तरसत्व' कान्तिः । ३. रूपकादिरलंकार तस्वान्वैर्बहुधोदितः ___ न कान्तमपि निभूपं विभाति वनितामुखम् ।।-काव्यालकार ४. Permissible ornament being for the most part structural or necessary. Apprecinttan, Style. १. कवयः कि न पश्यन्ति ।