पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/९३

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का व्य दर्पण प्रथम प्रकाश काव्य पहली छाया साहित्य करि प्रणाम गणपति, लिखू काव्य-शास्त्र का सार । काव्यप्रेमियों का बने कलिन कंठ का हार ॥ साहित्य शब्द का बहुत व्यापक अर्थ है । इस नाम-रूपात्मक जगत् में नाम और रूप का-शब्द और अर्थ का, केवल सहयोग हो साहित्य नहीं है, अपितु उसमें अनुकूल एक के साथ रुचिर दूसरे का सहृदय-श्लाघ्य सामञ्जस्य स्थापित करना भी है। साहित्य इस रीति से वाह्य जगत् के साथ हमारा आन्तरिक सौमनस्य स्थापित करता है। जहाँ तक मनोवेगों को तरंगित करने, सत्य के निगूढ़ तत्त्वों का चित्रण करने और मनुष्य-मात्रोपयोगी उदात्त विचार व्यक्त करने का सम्बन्ध है वहाँ तक संसार का साहित्य सब के लिए समान है-साधारण है। साहित्य एक युग का होने पर भी युगयुगान्तर का होता है। ___श्रास्वादनीय रस और माननीय सत्य साहित्य के ऐसे साधारण धर्म हैं, जिनकी उपलब्धि सभी देशों के वाड्मय में होती है। इसमें जो शाश्वत सौंदय और अनिर्वचनीय आनन्द होता है वह देश-विशेष का, काल-विशेष का, जाति- विशेष का, समाज-विशेष का नहीं होता। कारण यह कि परीक्षित होने पर अपने रूप में ये दोनों वैज्ञानिक सत्य के समान वैशिष्ठ्यशून्य, एकरस और एकरूप होते हैं। का००-६