पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पणा तीसरी छाया काव्य के फल प्राचीन शास्त्र के अनुसार काव्य के फल तो यशोलाभ, द्रव्य लाभ, लोक- व्यवहारज्ञान, सदुपदेश-प्राप्ति, दुख-निवारण, परमानन्दलाभ आदि अनेक हैं; पर अनेक आधुनिक कलाकारों की दृष्टि में अानन्द-लाभ के अतिरिक्त किसी का कोई उतना महत्त्व नहीं है । किन्तु सभी ऐसे नहीं। अधिकांश कलाकार और विवेचक काव्य के सदुद्देश्यों का समर्थन करते हैं। कवीन्द्र रवीन्द्र का कथन है कि "साहित्य में चिरस्थायी होने की चेष्टा ही मनुष्य को प्रिय चेष्टा है।" इसी बात को एक अगरेज कवि भी कहता है - कुछ रजकण ही छोड़ यहाँ से चल देते नरपति सेनानी । सम्राटों के शासन को बस रह जाती संदिग्ध कहानी । गल जाती है विश्व-विजेता चक्रवतियों की तलवारें, युग-युग तक पर इस जग मे है अजर-अमर कवि (कवि की वाणी)।' __डा. सुधीन्द्र, एम० ए. द्रव्य-लाभ तो होता ही है। सदुपदेश प्राप्ति तो प्रत्यक्ष है जिसका समर्थन पाश्चात्य विद्वान् भी करते है। टाल्सटाय का कहना है-"साहित्य या कला का.उद्देश्य जीवन-सुधार है, केवल सामान्य जीवन का सुधार ही नहीं, इससे और भी बहुत कुछ। ___कालरिज का कहना है कि "कविता ने मुझे वह शक्ति दी है, जिससे मैं संसार की सब वस्तुओं में भलाई और सुन्दरता को देखने का प्रयत्न करता हूँ।" ___ आधुनिक कवियो के काव्यो में भी नीति को ऐसी बातें मिलती है, जिनसे लोक व्यवहार का ज्ञान भली भांति हो सकता है। प्राचीन कवियों के काव्य तो लोकव्यवहार-ज्ञान के भण्डार ही हैं। हां, दुःख-निवारण एक ऐसी बात है, जिसे सहज ही सब नही मान सकते । बाहु-पीड़ा मिटाने के लिए 'हनुमान-बाहुक' को रचना-सम्बन्धी तुलसीदास की किवदन्ती का जब तक अस्तित्व रहेगा, तब तक श्रास्तिक जन कविता का यह उद्देश्य भी अवश्य मानेगे। शुक्लजी के शब्दों में "हृदय पर नित्य प्रभाव रखनेवाले रूपों और व्यापारों को सामने लाकर कविता बाह्य प्रकृति के साथ मनुष्य की अन्तः प्रकृति का सामंजस्या घटित करती हुई उसको भावात्मक सत्ता के प्रकाश का प्रयास करती है।" १. Princes and captains leave a little dust, And Kings dubicus legend of their reign The Swordsof Claesares, they are less than rust The poet doth remain.