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काव्य में रहस्यवाद


प्रवृत्ति-भेद को न पहचान कर काव्यक्षेत्र मे लोकमंगल का एकान्त उद्देश्य रखकर चले इससे उनकी समीक्षाएँ गिरजाघर के उपदेश के रूप में हो गईं। मनुष्य मनुष्य में प्रेम और भ्रातृभाव की प्रतिष्ठा ही काव्य का सीधा लक्ष्य ठहराने से उनकी दृष्टि बहुत संकुचित हो गई, जैसा कि उनकी सबसे उत्तम ठहराई हुई पुस्तको की विलक्षण सूची से विदित होगा। यदि टाल्सटाय की धर्म-भावना मे व्यक्तिगत धर्म के अतिरिक्त लोक-धर्म का भी समावेश होता तो उनके कथन में शायद इतना असामंजस्य न घटित होता।

अब यहाँ यह बात फिर स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कविता का सम्बन्ध ब्रह्म की व्यक्त सत्ता से है, चारो ओर फैले हुए गोचर जगत से है; अव्यक्त सत्ता से नहीं। जगत् भी अभिव्यक्ति है; काव्य भी अभिव्यक्ति है। जगत् अव्यक्त की की अभिव्यक्ति है और काव्य इस अभिव्यक्ति की भी अभि- व्यक्ति है। मनुष्य का ज्ञान देश और काल के बीच बहुत परिमित है। वह एक बार मे अपने भावो के लिए बहुत कम सामग्री उपस्थित कर सकता है। सदा और सर्वत्र किसी भाव के अनुकूल यह सामग्री उपलब्ध भी नहीं हो सकती। दूसरी बात यह है कि सबकी कल्पना इतनी तत्पर नहीं होती कि जगत् की खुली विभूति से संचित रूपो और व्यापारो की वे, जब चाहे तब, ऐसी मर्म- स्पर्शिणी योजना मन में कर सके जो भावो को एकबारगी जाग्रत कर दे। इसी से सूक्ष्म दृष्टि, तीव्र अनुभूति और तत्पर कल्पना- वाले कुछ लोग कवि-कर्म अपने हाथ में लेते हैं।