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काव्य में रहस्यवाद


के रूप और व्यापार का व्यवहार प्रस्तुत के स्वरूप के गोचर प्रत्यक्षीकरण के लिए भी बराबर होता है। तीन अन्तर्दृष्टिवाले कवि अपने सूक्ष्म ( Abstract ) विचारों का बड़ा ही रमणीय मूर्त प्रत्यक्षीकरण करते हैं । यह वात गूढ और सूक्ष्म-अर्थगर्भित कविताओं में वरावर पाई जाती है। अपर जिस प्रकार की आडं- वरी कविता का उल्लेख हुआ है उसका इस प्रकार की कविता से लेशमात्र संबंध नहीं । इसकी अन्वयपूर्ण व्याख्या होने पर विचार जगमगाते हुए वाहर निकलते आते हैं। उसकी तह में विचारधारा का नाम तक नहीं रहता।

सूक्ष्म भावना ( Abstract ) के मूर्त ( Concrete ) प्रत्यक्षीकरण का विधान लक्षणा द्वारा भी होता है और 'साध्य- वसान रूपक' द्वारा भी। लक्षणा व्यंग्य प्रयोजन सिद्ध करने के अतिरिक्त प्रस्तुत भावना के स्वरूप का प्रत्यक्षीकरण भी करती है । लोभ से चंचल मन को यदि कहा जाय कि वह किसी ओर लपक रहा है तो उसकी वृत्ति का स्वरूप गोचर होकर हमारे सामने आ जाता है। सूक्ष्म को मूर्त जिस प्रकार कवि लोग करते हैं उसी प्रकार कभी-कभी मूर्त को सूक्ष्म भी करते हैं । जब उन्हे किसी गोचर तथ्य के सम्बन्ध में अपने पाठकों की दृष्टि का अत्यन्त प्रसार करके उन्हें विचारोन्मुख और उनकी मनोवृत्ति को गंभीर करना वांछित होता है तब वे उस तथ्य की स्थूलता या गोचरता हटा कर उसे सूक्ष्म भावना( Abstract ) के रूप में रखते हैं। ये दोनों विधान उच्च कोटि की कविता में, जिसमें