पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/४६

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2 काव्य में रहस्यवाद ४१ सामान्य धारणा और भी पुष्ट होती रही। यह धारणा पूरबी (एशियाई ) जातियो मे अब तक मूलबद्ध है । ३. तृतीय क्षेत्र में सुख-सौन्दर्य की पूर्णता की भावना बिल्कुल आधुनिक है। इसका प्रादुर्भाव मनुष्य-जाति की स्थिति पर व्यापक दृष्टि से विचार करने की वर्तमान प्रवृत्ति के साथ- साथ हुआ है। धर्मनीति, राजनीति, व्यापारनीति आदि के कारण मनुष्य-जाति के भीतर फैली हुई विषमता, क्लेश, ताप, अन्याय, अत्याचार इत्यादि के परिहार की भावना और प्रयत्न के साथ आशा और उत्साह का संयोग करने के लिए कवियों की वाणी भी अग्रसर हुई । इस प्रकार की कविता का प्रचार योरपीय देशो मे सुख-समृद्धि और स्वातत्र्य के संगीत के रूप मे शेली के समय से लेकर अब तक जारी है। भविष्य का सुख-स्वम वर्तमान योरपीय कविता के प्रधान लक्षणो मे है । यह मंगलाशा बहुत ही प्रशस्त भाव है, इसमे सन्देह नहीं , पर इसके सम्बन्ध में कुछ अस्वाभाविक और कृत्रिम चर्चा का प्रचार भी देखा जाता है। यह सुख-स्वप्न "भविष्य की उपासना या भविष्य का प्रेम कहा जाता है । वास्तव में यह प्रस्तुत जीवन का प्रेम है। श्राशा इसी प्रेम के संचारी के रूप में उठकर इस जीवन के पूर्ण सौन्दर्य का दर्शन इसे भविष्य के क्षेत्र मे ले जाकर करती है । भविष्य के सुख- सौन्दर्य के चित्रण की प्रवृत्ति का यही मूल है । यह चित्रण भी उसी हद तक पहुँचा दिया जाता है जिस हद तक किसी परलोक के सुख-सौन्दर्य का चित्रण । अवरक्रोवे TTE -400