पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/४८

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काव्य में रहस्यवाद ४३ पानीपत इत्यादि नामो मे कितना मधुर प्रभाव भरा है ! अतीत का यह राग कहाँ तक उपयोगी है, इसका विचार करने हम नहीं बैठे हैं। उपयोगिता अनुपयोगिता का विचार छोड़, शुद्ध कला की दृष्टि से हम मनुष्य की रागात्मिका प्रकृति के स्वरूप का विचार कर रहे हैं। मनुष्य का हृदय वास्तव मे जैसा है वैसा मान कर हम चल रहे हैं। हमारे कहने का अभिप्राय केवल यही है कि "अतीत का राग" एक बहुत ही प्रबल भाव है। उसकी सत्ता का अस्वीकार किसी दशा में हम नही कर सकते । मनुष्य, शरीर यात्रा के सकीर्ण मार्ग मे मैले पड़े हुए अपने भावों को अतीत की पुनीत धारा में अवगाहन कराकर, न-जाने कब से निर्मल और स्वच्छ करता चला आ रहा है। अतीत का और हमारा साहचर्य्य बहुत पुराना है। उसे हम जानते हैं, पहचानते हैं, इसी लिए प्यार करते हैं । भविष्य को हम नही जानते, उसकी हमारी जान पहचान तक नही । उसके साथ प्रेम कैसा ? परिचय के विना प्रेम हम नहीं मानते । प्रेम के लिए परिचय चाहिए- चाहे पूरा, चाहे अधूरा। ४. अब इस गोचर-जगत् के परे अभौतिक, अव्यक्त और अज्ञात क्षेत्र को लीजिए। सुख-सौन्दर्य्य की पूर्ति के लिए जो तीन क्षेत्र ऊपर निर्दिष्ट किए गए उनमें सबसे अज्ञात भविष्य का क्षेत्र है । उसके अन्तर्गत हम दिखा चुके है कि जो "भविष्य का 'प्रेम' कहा जाता है वह वास्तव में प्रस्तुत जीवन का प्रेम है जो आशा का संचरण करा के कवि को भविष्य-सुख-सौन्दर्य के