पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१५१

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[ १४ । मलने को आई थी किन्तु उन के पास डोरी नहीं थी कि वह भला बांधें। वापा को देख कर उन मबी ने इन से डोरी मांगी इन्हो ने कहा पहिले व्याछ खेल खेलो तो डे रो दें। बात्तिका लोगों के हिसाव सभी खेल एक थे इम से इन लोगों ने पहिले व्याह खेल ही खेलना आरम्भ किया। राजकुमारी और वापा की गाठ जोडकर गीत गाकर दोनों की सव ने सात फेरी किया। कुछ दिन पीछे जब राजकमारी का व्याह ठहरा तव एक वरपक्ष के ज्योति- षी ने हाथ देख कर कहा कि इस का ते ब्याह हो चुका है । कुमारी का पिता यह सुन के बहुत ही घबडाया और इस की खोज करने लगा। बापा के साथो गोपाल गण यह चरित्र जानते थे परन्तु वापा ने इसके प्रगट करने को उनसे शपथ ली थो। यह शपथ भी विचित्र प्रकार की थी। एक गडहे के निक- वापा ने अपने सब संगियों को बैठाया और हाथ मे एक एक छोटा पत्थर दे कर कहा कि तुम लोग शपथ करो कि "तुमारा भन्ना बुरा कोई हाल किसी से न कगे, तुम को छोड के न जायंगे, और जहां जो कुछ सु- नैगे सव आ कर तुम' कहेगे यदि इस में कोई बात टालें तो हमारे और हमारे पुरखों से धर्म क' इस टेले की भांति धोवी के गडहे में प"वापा के संगियों ने यही कह कह के ठेला गडहे में फेंका और उस के अनुमार पापा का विवान करना उन के संगियों ने प्रकाश न किया। किन्तु छ सौ सरला कुमारियो पर जो वात विदित है वह कभी छप सकती है। धीरे धीरे यह विवाह खेल की कथा राजा के कान तक पहुंची। वापा को तीन वर्ष की अवस्था से भाण्डोर दुर्ग से लाकर ब्राह्मगों ने इसी नगेन्द्र नगर • ___* वापा सांडीर दुर्ग में भीलों के हाथ मे पले थे। जिस भील ने वापा को पाला वह नदु वंशी था । उम प्रदेश में भीली को दो जाति है। एक उजले अर्थात शुद्ध भील वंश के दूसरे संकर भील । यह संकर भील राजपतों से 'स- न्न कर उत्पन्न हुए हैं और पंवार चौहान रघुवशी जदुबशी इत्यादि राजपूतों की जाति के नाम उनकी जाति के भी होते है । यह भाण्डीर दुर्ग मेवार में जारील नगर ८ कोस दक्षिण पश्चिम है। निगेन्द्र नगर का नाम नागदहा प्रसिद्ध है । यह उदयपुर से पांच कोम उत्तर की ओर है। यहां से टाड साहब ने अ°क प्राचीनि लिपि संग्रह किया था। इन सबों मे एक पत्थर ईसवी नवस शतक का है जिस में रानाओं की उपाधि (गोहिलोट) लिखी है।