पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१७४

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[ ७ ] अप्रसन्न करना है । हमलोग जव कोइ चित्र देखते हैं उसके चितरे को स्मरण करते हैं और कवि की उक्ति के अनुसार जब कोई फूल सूंघते हैं उसके बनानेवाले को ध्यान करते हैं। सिद्धान्त यह कि हिन्दुओंपर जो आपने कर लगाना चाहा है वह न्याय के परम विरुद्ध है । राज्य के प्रवन्ध को नाश करनेवाला है और वल को शिथिल करने वाला है तथा हिन्दुस्तान के नीत रीत के अति विरुद्ध है। यदि आपको अपने मत का ऐसा आग्रह हो कि आप. इस बात से वाज न आवै तो पहिले राम सिंह से जो हिन्दुओं में मुख्य है यह कर लीजिए और फिर अपने इस शुभ चि- न्तक को बुलाइए किन्तु यों प्रजा पीड़न वा रण भङ्ग बीर धर्म और उदारचित्त के विरुद्ध है। बड़े आश्चर्य की बात है कि आपके मंत्रियो में आपको ऐसे हानि कर विषय में कोई उत्तम मन्त्र नहीं दिया ।" महात्मा कर्नेल ढाड साहब लिखते हैं कि यह पत्र महाराज जसवंत सिंह ने नहीं लिखा था महाराणा राज सिंह ने लिखा था । यह प्रसिद्ध दानो कन्नौज के राजा गोबिन्दचन्द के अन्य तर दान पत्र की प्रति है। यह राजा बड़ा ही दानी था। ताम्रपत्र । स्वस्ति । अकुंठोत्कुण्ठवैकुंठ ठपीठलुटत्करः । संरम्भः सुरतारंभे सश्रियःश्रे- यसेऽस्तुवः ॥ १ ॥ आसीदशीतद्युति वंशजातक्ष्मापालमालामुदिवंगतासु । साक्षा- द्विवखानिवभूरिधाम्ना नाम्ना यशोविग्रहझ्त्युदारः ।। २ ॥ तत्सुतोभून्महीचंद्रश्चन्द्र- धामनिभनिजं । येनायारमकपार पारेव्यापारितयशः ॥ ३ ॥ तस्याऽभूत्तनयोनयैक- रसिकः क्रांतद्विपन्मंडलो विध्वस्ताद्भुतवीरयोध विजितः श्रीचन्द्रदेवोनृपः। येनोदार- तरप्रतापशमिताशेपप्रजोपद्रवं । श्रीमङ्गाधिपुराधिराज्यसममं दोविक्रमेनोर्जितं ॥४॥ तीर्थाणि काशिकुशिकोत्तरकोसलेन्द्रस्थानीयकानि परिपायताभिगम्य ॥ हेमात्मतुल्य- मनिशंददता द्विजेभ्यो येनांकिता वसुमती शतशस्तुलाभिः ॥५॥ तस्यात्मजोमदन- पालइतिक्षितीद्रचूडामणिविजययेनिजगोत्रचंद्रः । यस्याभिषेककलशोल्लसितैःपयोभिः प्रक्षालितंकलिरजःपटलंधरित्रयाः ॥ ६ ॥ यस्यासी द्विजयःप्रयाणसमये तुंगाचलौछ- श्चलन्माद्यत्कुंभिपदक्रमात्समसरत्नत्रस्यन्ममहीमंडले। चूडारत्न विभिन्नतालुगालतस्था-