पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३५१

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सुनाता है। जो वाक्य श्रीमती के. यहां से आज सवेरे तार के द्वारा मेरे पास पहुंचे हैं ये हैं :-

"हम, विक्टोरिया ईश्वर की कृपा से, संयुक्त राज ( ग्रेट ब्रिटन और प्रायरलैन्ड ) की महारानी, हिन्दुस्तान की राजराजेश्वरी, अपने वाइस- राय के द्वारा अपने सब राज काज सम्बन्धी और सेनासंबंधी अधिकारियों, वईसों, सरदारों और प्रजा को जो इस समय दिल्ली में इकट्ठे हैं अपना रा. जसी और राजराजेश्वरीय आशीर्वाद भेजते हैं और उस भारी कृपा और पूर्ण स्नेह वा विश्वास कराते हैं जो हम अपने हिन्दुस्तान के महाराज्य को प्रजा की ओर रखते हैं : इस को यह देख कर जी से प्रसन्न ता हुई कि हमा- रे प्यारे पुत्र का इन लोगों ने कैसा कुछ आदर सत्कार किया, और अपने कुल और सिंहासन की ओर उन की राजभक्ति और रमेह के इस प्रमाण से हमारे जी पर बहुत असर हुा । हमें भरोसा है कि इस शुभ अवसर का यह फल होगा कि हमारे और हमारी प्रजा के बीच नेह दृढ़ और होगा, और सब छोटे बड़े को इस बात का निश्चय ही जायगा कि हमारे दाज में उन लोगों की खतन्त्रता धर्स और न्याय प्राप्त हैं, और हमारे बाज का अभिप्राय और इच्छा सदा यही है कि उन के सुख की वृद्धि, सौभाग्य की अधिकता, और कल्याण की उन्नति होती रहे।" मुझे विश्वास है कि आप लोग इन कृपामय बाक्यों की गुणग्राहकता करेंगे।

ईश्वर विक्टोरिया लंयुक्त राज की महारानी और हि. न्टु रतान की राजराजेश्वरी की रक्षा करे ।

इस अड्रेस के समाप्त होते ही नैशल ऐन्थेम का बाजा बजने लगा और सेना ने तीन बार हुरे शब्द की आनन्दध्वनि की। दरबार के लोगों ने भी परम उत्साह से खड़े होकर हुर्रे शब्द और हथेलियों को प्रानन्दध्वनि करके अपने जी का उमंग प्रगट किया । महाराज सेंधिया, निज़ाम की ओर से सर सालारजंग, राजपुताना के महाराजों की तरफ से महाराज जयपुर, बेगम भूपाल, महाराज कश्मीर, और दूसरे सरदारों ने खड़े होकार एक दसरे को बधाई दी और अपनी रानभति प्रगट की। इस के अनन्तर श्रीयुत वाइसराय ने आज्ञा की कि दरबार हो चुका और अपनी चार घोड़े को गाड़ी पर चढ़कर अपने खे में को रवाने हुए।