पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/८३

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भलिका। यह वंशावली परम्परा की जन अति और प्राचीन लेखों से संग्टहीत हुई है परन्तु इमका विशेष भाग अविष्य पुराण के उत्तर भाग में के श्रीमहालक्ष्मी व्रत की कथा से लिया गया है, इस में वैश्यों में मुख्य अगरवालों की उत्पत्ति न्तिखी है। इस बात का सहाराज जय सिंह के समय में निर्णय हुआ था कि बैश्यों में सुख्य अगरवाले ही हैं, इन अगरवालों का संक्षेप वृत्तान्त एस स्थान पर लिखा जाता है। इनका मुख्य देश पश्चिमोत्तर प्रान्त है और इनकी बोस्ती स्त्री और पुरुष सब की खड़ी बोन्तो अर्थात् उरटू है एन के पुरोहित गोड़ ब्राह्मण हैं और इनका व्यवहार सीधा और प्रायः सचा होता है और इस जाति में एक विशेषता यह है कि इन में कोई ज'चे नीचे नहीं होते और न किमी को कोई अन्ज ( उपाधि ) होती है, बनारस और सिरजापुर में तो पुरवियों का नाम भी सुनाता है पर जो देश में पूछो कि तुम पुरबिए हो कि पछांहीं तो वे लोग बड़ा पाश्चय करते हैं और कहते हैं कि पुरबिए शब्द का क्या अर्थ है। बनारम के पछांही लोगों में भी ठीक अगरवालों की रीते नहीं मित तीं और उनकी बोली भी वैसी नहीं है केवल जो घर दिल्ली वाले लोगों वो हैं उन में वे बातें हैं । इन लोगों में जैसा विवाहाटिक में साह होता है वैसा ही मरने में बरसों दुःख भी करते हैं परन्तु जो बूढ़ा मरता है तब तो विवाह मे भी धूमधाम विशेष कर देते हैं !!! देश में तो जामा पगड़ी पहन के सब दाल भात खाते हैं पर इधर वह व्योहार नहीं करते और केवल परी खाने में जाति का साथ देते हैं एक बात यह भी डम जाति में उत्तम है कि अगरवान्तों में मांस और मदिरा की चाल कहीं नहीं है पर हुक्का इनके पुरोहित और ये दोनों पीते हैं यों जो लोग नेमी हों वे न पियें पर जाति को चाल है । विवाह के समय इन का बहुत व्यय करना सब में प्रसिद्ध है और इसी विपत से कई घर बिगड़ गए पर यह रोति छोड़ते नहीं। एन में कुछ लोग जैनी भी होते हैं और देस में सब जनेऊ प- हिरते हैं पर इधर परब में कोई कोई नहीं भी पहिरते, इन को पुरुषों का प- हिररावा पगड़ी पायजामा या धोती और अंगा है और रित्तयों का पहिराका