पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/११०

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, ( ५५ ) इसलिये कोई खास प्रोग्राम न होने के कारण एक दिन रुकने में विशेष बाधा नहीं हुई । यदि कहीं का निश्चित प्रोग्राम होता, तब तो तीसरे दिन रुकना गैर मुमकिन था । हाँ, किशनगंज से ६.७ मील उत्तर देहात में दूसरे दिन जाना था। पांजीपाड़ा नामक एक हाट में मीटिंग करनी थी। किशनगंज से जो सड़क उत्तर ओर जाती है उसी के किनारे पांजीपाड़ा वस्ती है। किशनगंज से एक लाइट रेलवे दार्जिलिग जाती है। मगर वह तो अजीब सी है। मालूम होता है बैलगाडी चलती है । हम लोग, जहाँ तक याद है, घोडागाड़ी से ही पांजीगड़ा गये। बाजार का दिन था । जिस जगह बैठके लोग चीजें बेंचते और खरीदते थे उसके पास ही एक फूस का भोपड़ा था । हम तो कही चुके हैं कि वह इलाका प्रायः मुसलमानों का ही है । हाट में भी हमें चही नजर आ रहे थे। यह भी देखा कि उस झोपड़े में उनका एक खासा मजमा है, यों तो उसमें भी जाना जाना लगा ही था । हमें पता लगा कि वह मोपड़ा ही मस्जिद थी जिसमें दोपहर के बाद की नमाज पढ़ी जा रही थी । घोर देहात में इस प्रकार धार्मिक भावना देखके में प्रभावित हुधा । ऐसा देखना पहली ही बार था ! मैंने सोचा कि इन्दी के सामने किसान समस्यात्रों पर स्पीच देनी है। कहीं ऐसा न हो कि सारा परिश्रम वेकार जाय। मगर बात उलटी दी हुई । नेरे अाश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि वे सभी बहुत ही गौर से मेरी बातें सुनते थे। मैं जैसे जैसे बोलता जाता था वैसे वैसे उनके चेहरे खिलते जाते । मेरी बातों की पसन्दगी जानने के लिये कितनों के सर हिलते थे। बहुतेरे तो मस्त हो रहे थे और झूमते थे। एक तो मुझे डरा यह था कि मुसलमान किसानों में बोलना है। कहीं ऐसा न हो कि गेम्वा पख देखते दो वे भड़क उठे कि यह कोई हिन्दू फकीर अपने धर्म वर्म की बात बोलने प्राया है। जमात बांध फे नमाज पढ़ते देख मेरा यह हर और मीन्द गया था। दूसरा अन्देशा यह था किबंगाल की रहद्द पर बसने वाले लोगों में गला