पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(५७) ही वहाँ थे। बाकी तो खेती गिरस्ती में ही लगे थे। मगर मैंने उनसे उस समय तो यह कहके छुट्टी ली कि कभी पीछे पाऊँगा । इस समय मेरा प्रोग्राम दूसरी जगह तय हो गया है। हालाँकि मैं वह वादा अभी तक पूरा कर न सका, इसका सख्त अफसोस मुझे है। इस प्रकार उस मीटिंग और मुसलिम किसानों की मनोवृत्ति का बहुत ही अच्छा असर लेके हम लोग शाम तक किशनगंज वापिस पाये। किसानों और मजदूरों के आये दिन के जो अार्थिक प्रश्न हैं और जो उनकी रोजमर्रा की मुसीबतें हैं यह ऐसी चीजें हैं कि इन्दी की बुनियाद पर सभी किसान मजदूर, चाहे उनका धर्म और मजह कुछ भी क्यों न हो.. एक हो सकते हैं । आसानी से एक सूत्र में बेखटे के बँध सकते हैं, उनकी जत्थेबन्दी हो सकती है, यह बात हमारे दिमाग में उस दिन से अच्छी तरह बैठ गई । हमें वहाँ इसका नमूना ही मिल गया । यह हमारी जिन्दगी और उनके जीवन में शायद पहला ही मौका था जब मुसलमान किसानों ने हमारे जैसे हिन्दू कहे जाने वाले फकीर को अपना श्रादमी समझा और हमें अपने घर गाँव में मुहब्बत से ले जाना चाहा। हालांकि हमारी और उनकी मुलाकात पहले पहल सिर्फ उसी दिन एक दो ही घंटे के लिये हुई थी। अाखिर अार्थिक प्रश्नों के सिवाय दूसरा कौन जादू था जिसने उन पर ऐसा असर किया ? हमारी बातों के सामने मौलवियों की बातों को जो उनने उतना पसन्द नहीं किया इसकी वजह अाखिर दूसरी और क्या थी । कहते हैं कि सारंगी और सितार के तारों की मनकार जर की दूर से भी आती है तो सभी इनसान, फिर चाहे वह किसी भी धर्म मजद के क्यों न हों, मुग्ध होके जबर्दस्ती खिंच पाते हैं। सारी बातें, सारे काम के एकटक सुनते रहते हैं। लेकिन अगर खुद उन्दी को घर से दिलों के-तार कनक उठे तो। तब तो और भी मजा यायेगा और ये होके ही रहेंगे । असल में दुनियादी विपदाएँ सभी गरीयों की एक ही है। वे सभी हिन्दू मुसलिम को बराबर सताती है । इसीलिये एक तरह सभी के दिलों में चुभती हैं। ऐसी हालत में मोदी उनकी चर्चा हमने कि: . ला.