पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- . ( ६२ ) हुआ रहता । मस्तान, और उनके साथी कोशिश करके थक गये। मगर दूध न मिला। बाकी लोगों ने खाना-बाना खाया। रात में थकावट के. चलते हम सभी सो रहे । त्य पाया कि बहुत तड़के लोग जमा हों और हमारी मीटिंग हो । उसी दिन जल्द से जल्द समा करके और खा पी के हमें जहानपुर पहुँचने के लिये आगे चल पड़ना भी था । हां, मस्तान साहन इधर उधर खबरें भेजते रहे उस दिन शाम से ही, कि कल तड़के लोग जुट जाँय । पता लगा कि उनने हमारे बारे में पहले से ही लोगों में प्रचार भी कर रखा था। दूसरे दिन नित्यक्रिया स्नानादि के बाद हमारी सभा की तैयारी हुई। लोग जमा हुए । हमने उन्हें, घंटों समझाया। हम तो सिर्फ उनकी और गरीबी की बातें ही करना जानते थे और वे बातें उन्हें रुचती भी थीं । मस्तान साहब शेर (कविता) के प्रेमी हैं। बहुत से पद मौके मौके के. वे जानते भी हैं। हमारे बारे में भी उनका यही खयाल था। उनने हमें भी कहा कि बीच बीच में कुछ चुभते हुए पद सुनाते चलेंगे तो अच्छा असर होगा । जहाँ तक हो सका हमने उनकी मजी को पूरा किया। मगर इमें खुशी थी कि एक सच्चे जन-सेवक के घर पर ठेठ देहात में मरते जीते जा पहुँचे थे, जैसे लोग तीर्थ और हज की यात्रा में पैदल ही जाते हैं ! जही सच्चे और मस्ताने जन-सेवक हों असल तीर्थ तो वही है। पुराने लोगों ने तो कहा भी है कि सत्पुरुष और जन सेवक तीर्थों तक को पवित्र कर देते हैं अपने पांवों की धूलों से.-"स्वयं हि तीर्थानि पुनन्ति सन्तः ।" तीर्थ बने भी तो हैं आखिर सत्पुरुषों के रहने के ही कारण । इस युग में किसानों: के तीर्थ कुछ और ही ढंग के होंगे। जहानपुर चलने के लिये भी एक बैलगाड़ी का इन्तजाम हुया,. हालांकि पहले दिन के अनुभव से हम डरते थे कि फिर वही हालत होगी। कुछ तो पहले दिन की थकावट और कुछ लोगों के हठ के करते बैलगाड़ी फिर भी ठीक होई गई और उसी पर लद-फन के हम लोग दोपहर के पहले ही चल पड़े। शाम तक जैसे तैसे ना जी के घर पर पहुँचना जो था।