पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१२५

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। ( ७० ) तो.रहो गये। वे जमादारों को पैसे देते पोर लोगों से वसून लेते । भज्ञा यह लूट और अन्वेरखाता नहीं है तो और हई क्या ? हमें इसके खिलाफ भी तूफान खड़ा करना पड़ा। दरभंगा महाराज को जमींदारी में ही हमें सबसे पहले वहीं पर पता चला कि 'टरेस' के नाम पर गरीबों पर एक बला श्राई है और जमींदार सबों को परीशान कर रहा है । पहले तो हम समझी न सके कि यह 'टरेस' कौन सी बला है । मगर बातचीत से पता लगा कि असल में "ट्रेस पास" या दूसरे की जमीन पर जबर्दस्ती कजा से ही मतलब है । 'पास' शब्द को तो हटा दिया और 'ट्रेस' का 'टरेस' कर दिया है। आखिर अनाड़ी देहाती क्या जानें कि असल शब्द क्या है । बात यों होती है कि इधर कुछ दिनों से, खासकर किसान-सभा के आन्दोलन के शुरू होने पर, जमींदार के आदमियों ने किसानों को तंग करने के नये नये तरीके सोचने शुरू कर दिये हैं । इस प्रकार एक तो महाराजा की आमदनी बढ़ रही है। दूसरे किसान लोग पस्त हो जाते हैं और सिर उठा नहीं सकते । इसी सिलसिले में यह ट्रेस पास वाला हथियार भी ढूँढ निकाला गया है । असल में सर्वे के समय किसानों के मकानों की जमीन खतियान में लिखी गई है । मगर मकान या झोपड़े दूर दूर रहने से बीच बीच में खाली जमीनें भी रह गई हैं जिन्हें कहीं कहीं गैर मजरुया ग्राम और कहीं कहीं खास लिखा गया है । मुमकिन है कि समय पा के कुछ ज्यादा जमीन पर किसानों के पशु वगैरह बाँधे जाते हो। यह बात तो सर्वे के समय भी होती होगी । आखिर कलकत्ता जैसे शहर में तो किसान बसते ही नहीं कि इंच इंच जमीन की खोज हो । मगर सर्वे में इसका जिक्र नहीं हुआ। चौबीसों घंटे पशु घर में ही तो रहते नहीं। बाहर भी बँधते ही हैं। यह भी हो सकता है कि खामखाह कहीं किसान ने कुछ जमीन हथिया ली हो । श्राखिर इफरात जो ठहरी । मगर जमींदार को तो मौका चाहिये तंग करने का। उसके अमले तो घूस और सिफारिश चाहते हैं जो अब किसानों से ग्रामतौर से-होना असंभव है। इसलिये रंज होके खतियान के मुताबिक जमीन नापी