पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१३०

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( ७५ ) पानी से बच सकें । अकसर उस अोर ऊपर से छाई हुई गाड़ियाँ मिलती हैं। मगर वह तो थी निरी सामान ढोने वाली। उसमें एक और भी कमी थी। गाडियों के दोनों तरफ बाँस की बल्लियाँ लगी रहती हैं जिनमें मजबूत रस्सी लगा के गाड़ी के साथ बाँधते हैं । किनारों पर लगे झूटों पर वह बल्लियाँ लगाई जाती हैं । इस प्रकार गाड़ी में बैठने पर भूल-चूक से नीचे गिरने का खतरा नहीं रहता । सामान भी हिफाजत से रहता है। मगर हमारी गाड़ी में यह एक भो न था । इससे खुद भी गिर पड़ने का डर था और सामान के भी लुढ़क जाने का अन्देशा था। गाड़ीवान के अलावे हम तोन श्रादमी उस पर बैठे थे। सामान भी था। हालत यह हुई कि हम सभी दिन में तो पलथी मारे बैठे ही रहे। रात में भी वही करना पड़ा । सोने की बात तो छोड़िये । जरा सा लेटना या झुकना भी गैर मुमकिन था। यह तकलीफ बर्दाश्त के बाहर थी। जिन्दगी में मेरे लिये यह पहला ही मौका था जब सोलह घंटे से ज्यादा बैलगादी पर बैठे बैठे सारी रात गवाई । बैलगाड़ी की सवारी तो यो भी बहुत बुरी होती है। उसमें उठाव-पटक तो कदम कदम पर होता ही रहता है। धक्के ऐने लगते हैं कि कलेजा दहल जाता है । यदि उस पर पुयाल वगैरह कोई नर्म चीज न हो तो काफी चोट लगती है। चूतड़ नवमी हो जाते हैं। इतने पर भी यदि लेटने या सोने का जरा भी मौका न मिले तो मौत ही समझिये । मगर पर्दा ये सारे सामान मौजूद थे ! मन होता हँसता था कि लोग समझते होगे कि किसान-सभा का काम बहुत ही पाराम वाला है। मैं यदि एक दिन भी सारी रात जग जाऊँ तो अगले दिन जरूर ही बीमार पड़ जाऊँ, यह बात जान लेने पर उस रात को तरला का अन्दाज लगाया जा सकता है । तिन पर मीटर या कि कहीं ट्रेन न टूट जाय । इसलिये गायोवान को मार्ग न लाद करते रहे। इस प्रकार गाड़ी याने के पहले ही जैसे तैसे बदरा स्टेशन पहुंची तो गये।