पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१३३

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( ७८ ) वाहियात लगाम सी लग जाती है और जनता के विचार का निराबाध प्रवाह रुक जाता है। हमने सोचा कि यह महा पाप हमें न करना चाहिये । जहाँ तक स्मरण है, हम पटने में बिहार प्रान्तीय किसान कौंसिल (कार्य- कारिणी) की मीटिंग कर रहे थे। क्योंकि हाजीपुर के सम्बन्ध में सारी तैयारी करनी थी, सब बातें सोचनी थीं । बनमनखी के सम्मेलनों के फौरन ही बाद यह मीटिंग थी। वहीं पर जब हमने बनमनखी से लौटे किसी व्यक्ति के मुख से यह सुना कि वहाँ किसान-सम्मेलन में न सिर्फ बिहार प्रान्तीय किसान-सभा की मातहती में स्वतंत्र किसान-सभा बनाने का प्रस्ताव पास हुश्रा, बल्कि जमींदारी-प्रथा मिटाने का भी निश्चय हो गया, तो हम उछल पड़े। हमने यह भी सुना कि प्रायः पन्द्रह हजार किसान उपस्थित होंगे। क्योंकि वन- मनखी तो घोर देहात है । और लीडरों के हजार कुडबुड़ाने, सरतोड़ परिश्रम करके विरोध करने पर भी केवल तीन चार सौ लोगों ने विरोध में राय दी। बाकियों ने 'इन्किलाब जिन्दाबाद', 'जमीदारी-प्रथा नाश हो', 'किसान- राज्य कायम हो', 'किसान-सभा जिन्दाबाद' श्रादि नारों के बीच इन प्रस्तावों के पक्ष में राय दी। विरोध करने वाले न सिर्फ पूणियौं जिले के कांग्रेसी लीडर थे, प्रत्युत बाहर वाले भी। किसीने खुल के विरोध किया और सारी ताकत लगा दी, तो किसी ने भीतर ही भीतर यही काम किया। मगर विरोध में चूके एक भी नहीं । किसान-सभा-वादियो पर करारी डॉर मी. पड़ा। मगर नतीजा कुछ न हुआ। इस निराली घटना ने, जो अपने ढंग की पहली ही थी, हममें बहुतों की आँखें खोल दी, चाहे इससे कांग्रेसी लीडरों की आँखें भले ही न खुली हों। मेरे सामने तो इसके बहुत पहले कुछ ऐसी बातें हो गई थी जिनसे मेरा विश्वास किसानों में, किसान-सभा में और उसके लक्ष्य में पका हो गया था। मगर इस घटना ने हमारे दूसरे साथियों को मी ऐसा विश्वासी. बनने का मौका दिया। ,