। (८०) बाते यहाँ न थी । इसीलिये सिवाय गाड़ीवान को बारबार ललकारने कि जग तेज हाँको भई, और कोई चारा न था । मगर देहात का बरसाती रास्ता घूम-घुमाव वाला था। वह गाड़ीवान वेचारा भी क्या करता ? उसने काफी मुस्तैदी दिखाई । बैल भी काफी परीशान हुए । फिर भी मधेपुरा दूर ही रहा । बड़ी दिक्कत और परीशानी के बाद शाम होते होते हम कोसी के किनारे पहुँचे । अब हमारे बीच में यह नदी ही खड़ी थी। नहीं तो मीटिंग में दौड़ जाते । झटपट पार होने की कोशिश करने लगे। यह नदी भी बड़ी बुरी है । धारा चौड़ी और तेज है। हमने वहीं देखा कि किसान लोग निराश होके सभा-स्थान से लौट रहे हैं । कुछ तो नाव से इस पार आ गये हैं। कुछ उस पार किनारे नाव की अाशा में खड़े हैं। दूर दूर से आये थे। अन्धेरा हो रहा था। घर न लौटें तो वहाँ पशु-मवेशियों की हिफाजत कौन करेगा, यह विकट प्रश्न था । खाना-बाना भी साथ न लाये थे। मगर जब उन्हें पता लगा कि हमी स्वामी जी हैं तो बहुतेरे तो 'दर्शन' से ही संतुष्ट होके चलते बने । लेकिन कुछ साथ ही नाव पर फिर वापस लौटे । पार होते होते काफी अन्धेरा हो गया । फिर भी हिम्मत थी कि सभा होगी ही । उस पार वाले भी साथ हो लिये। मैं था अागे अागे । पीछे किसानों का झुंड था । हम लोग वेतहाशा दौड़ रहे थे। खेतों से ही होके जाना था। फसल खड़ी थी। सभा-स्थान काफी दूर था। हालाँकि हम मधेपुरा में ही दौड़ रहे थे। लोगों ने स्वामी जी की जय', 'लौट चलो' अादि की आवाजें लगानी शुरू की। ताकि जो लोग दूसरे रास्तों से लौटते हों घर की तरफ, वे भी सभा में वापस आयें । अजीब सभा थी। एक बार तो कुछ देर तक दिशायें पुकार से गँज गई। जब तक हमारी दौड़ जारी रही पुकार भी होती ही रही । जो जहाँ था वहीं से जय जय करता लौट पड़ा। सूखती फसल को गोया बारिश मिली। निराश लोगों में खुशी का ठिकाना न रहा । चाहे भूखे भले ही रहें, मगर स्वामी जी का व्याख्यान तो सुन लें, यही खयाल उनके दिलों में उछाले मार रहा था। ।
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