पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१३८

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( ८३ ) तो फिर खड़ा हो जाता है। जब तक उसकी जड़े न खोद डाली जाय त्य तक कुछ होने जाने का नहीं । और यह काम मामूली नहीं है । इसीसे किसान तबाह रहते हैं। कोसी की धारा जिधर जाती है उधर एक तो लत लत्रीया जमीन पानी के पेट में समा जाती है । दूसरे जङ्गल हो जाने से दियात बढ़ती है। तीसरे मलेरिया का प्रकोप ऐसा होता है कि सबों के चेहरे पीले पड़ जाते हैं। यह भी नहीं कि धारा सर्वत्र बनी रहे। लाखो करोदा गांव में स्थिर पानी पड़ा रहता है। इसीसे जङ्गल तैयार होता है और मच्छरों की फौज पैदा होती है। उस पानी में एक प्रकार का धान बोया जा सकता है। मगर उस पर यह साफत होती है कि जब धान में बालें लगती और पकती हैं तो रात में जल वाले पक्षियों का गिरोद लाखों की तादाद में बाके खा डालता है। यह यम-सेना कहाँ से श्राती है कीन बताय? मगर श्राती है जरूर । एक तो गत में राज रोज इनसे पसल की रखवाली अासान नहीं है-गैर मुमकिन है। बिना नाव के काम चलता नहीं । सो भी बहुत ज्यादा ना हो और सैकड़ों हजागे श्रादमी ठारी राम जगते तमा हू हू करते रहे, तब यही जाके शायद पिट टूटे। किन्तु श्राश्चर्य तो यह है कि जमींदार उन्हें ऐसा करने भी नहीं देते। उस इलारे में नागदिया के जमादार है बा० भूपेन्द्र नागपण सिंद उफ़ लाल सादर । उन्हें निदियों के शिकार का बड़ा शौक है। खुद तो खुद, दूर दूर से अपने दोस्तों को भी बुलाते हैं इसी काम के लिये । सरकारी अफसर भी शवम निषित किये जाते है । गत में पानी में चाग डाला जाता है ताकि पक्षियों के दल के दल उमी लोभ से गये । ध्रय यदि फी किसान ने उन्हें उदाना शुरू किया अपनी फसल बचाने के लिये, वो जमींदार साह और उनके दोल्ल शिकार कैसे खेलेंगे तो उनका बारा मनाही नियम को जापगारिये तो खास तौर से चारा पा जाता है, ताकि दि धान के सोमरीन भी त्रायें तो उन चारे के लोभ से तो प्रागेही। सीकार कि किसानो को सरल मनदी है कि.चिदियो को गिजा पादिन में