पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१४०

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(८५) वाले किसान कैसे जीते होंगे यह सवाल स्वाभाविक है। हमें पता लगा- किसानों ने खून के आँसू रोके हमें अपनी दु:ख-दर्द को गाथा सुनाई-कि गाँव की चौदह थाना जमीन पानी के भीतर है। अच्छे से अच्छे विद्वान् और कुलीन ब्राहाण गाँव मे दौड़ के बाजे गाजे के साथ घुटने भर पानी में हमें लेने अाये थे। उन्हें अाज खुशी की घड़ी मालूम पड़ती थी। उन्हें किसान-सभा से श्राशा थी। इसीलिये चाहते थे कि मैं खुद अपनी अाँखों उनकी दुर्दशा देख जाऊँ । उनने अपना किसान सुलभ निर्मल, एवं कोमल हृदय मेरे सामने बिछा दिया था । सच्ची बात तो यह है कि वह भयावनी हालत देख के मेरा खून खौलता था, मेरी आँखों से भाग निकलती थी । जी चाहता था कि इस राक्षसी जमींदारी को कैसे रसातल भेज दूं-मटियामेट कर दूं। मैंने दिल भर के वहाँ की सभा में जमींदारी-प्रथा को फोसा ! मीटिंग में वहाँ के ब्राह्मणों ने जो अभिनन्दन किया वह कभी भूलने वाला नहीं । उसने मेरा मंकल्प और भी दृढ़ कर दिया कि जमींदारी को जानुम में पहुँना के ही दम लँगा। वहीं मुझे पता लगा कि बीसियों साल से जमीन में पारदी माल गनी रहता है। खेती हो पाती नहीं। फिर भी जमींदार का लगान ऐना ही पहा है ! वाह रे लगान और याद रे फानन ! न देने पर मदाराजा नालिश करते हैं और माल मवेशी ले जाते हैं। उन्हें तो नालिश करने की भी जरूरत नहीं है। सर्टिफिकेट का अधिकार जो प्राप्त है। जो सरकारी पावना बिना नालिश के ही वाल होता है । कोकि जोई चीज मिली जन्त, कुर्क कर ली जाती है। ठीक वैसे ही सर्टिफिकेट के बल पर महाराजाधिराज भी करते हैं। केवल सरकारी माल-मुहकमे केवफमर कोशकायदा सूचना देने से ही उनमा फाम बन जाता है और ई गई करने वालो जाते तो एक रुपये में पचीस पनाम की नीज नीलामो बालानी लिन जेवर, जमोन न के, र लेके. का किला भी खामा सादारी देते हैं। सवाल हो सकता है कि मोनी को नीलाम बनेर --