पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१४३

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भागलपुर जिले की ही एक और दिलचल यात्रा है। वह भी उसी कोसी के इलाके में थी। कोसी की धारा के बराबर बदलते रहने के कारण बहुत सी जमीन भागलपुर और पूणियां जिलों के बीच में जंगल से घिरी है। मगर बीच बीच में खेती होती है। वहीं कोसी का दिवारा कहा जाता है । राजपूताने के अपार रेगित्तान की-सी उसकी हालत है । चलते जाइये, मगर खात्मा नहीं होता । उस दियारे में कदवा नाम का एक गांव या गांवों का समूह है। दस दस, बीस बीस या अधिक झोपड़ों के. अनेक टोले बसते हैं । कोसों चले जाइये । पर, एक ही गाँव पाइयेगा। नदियों के हट जाने पर जो जमीनें नये सिरे से बनती हैं वही हैं दियारे की जमीनें । ऐसी जमीनों में प्राबादी की यही हालत सर्वत्र पाई जाती है। लगातार मीलो लम्वे गाँव तो कहीं शायद ही मिलेंगे। खेती करने की आसानी के खयाल से दो चार मोपड़े पड़ गये और काम चालू हो गया । फिर कुछ दूर हट के कुछ छप्पर डाल दिये गये और उन्हीं के इर्द-गिर्द खेती होने लगी। इसी तरह गाँव वसते हैं। कदवा भी ऐसे ही गाँवों में एक है। भागलपुर जिले के उत्तरी भाग में श्री नागेश्वर सेन जी एक गटीले युवक और लगन वाले किसान-सेवक हैं। कदवा उन्हीं का कार्यक्षेत्र उस समय था। उनने ही वहां मीटिंग का प्रबन्ध किया था। उन्होंके अनुरोध और अाग्रह से हमने भी वहाँ जाना स्वीकार कर लिया था। लेकिन हमें इस बात का पता न था कि कदवा है किधर और वहाँ पहुँचेंगे किस तरह किस रास्ते से ? कोसी दियारे में कहीं है, सिर्फ इतनी ही जानकारी थी। जब तक वहाँ के लिये हम खाना न हो गये तब तक जानते थे कि कहीं बैलगाड़ी के रास्ते पर होगा। मगर जब मीटिंग के पहिले