पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२०

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कर्त्ता जिन्हें आत्म-विश्वास हो और जो धुन के पक्के हों कि लक्ष्य तक पहुँच कर ही दम लें।

ये दो मौलिक कमियाँ थीं, जिन्हें असहयोग आन्दोलन ने पूरा कर दिया। १९२१ में बड़ी से बड़ी, शक्तिशाली और शस्त्रास्त्र सुसज्जित सरकार को एक बार निहत्थे किसानों ने कँपा दिया, हिला दिया। फलस्वरूप उन्हें अपनी अपार अन्तनिहित शक्ति का सहसा भान होने से उनमें आत्म-विश्वास हो गया कि जब इतनी बड़ी सरकार को हिला दिया, तो जमींदार, ताल्लुकेदार और साहुकार की क्या बिसात? उन्हें चीं बुलाना तो बायें हाथ का खेल है। असहयोग ने हजारों धनी कार्यकर्त्ता भी दिये जो ऊपर आ गये-मैदान में आ गये। असहयोग की सफलता के मुख्य आधार किसान ही थे, जो पहली बार सामूहिक रूप से कांग्रेस में आये थे। इसीलिये वे तथा उनके लिये कार्यकर्त्ता-दोनों ही-आत्म-विश्वास प्राप्त करके आगे बढ़े।

यद्यपि ये बातें कुछ देर में हुई। क्योंकि आत्म-विश्वास और दृढ़ निश्चय के लिये समर और मनन की आवश्यकता होती है। तथापि ये हुई अवश्य। इसीलिये, और राजनीतिक उलझनों के चलते भी, संगठित किसान-आन्दोलन किसान-सभा के रूप में १९२६-२७ में बिहार में तथा अन्यत्र शुरू हुआ। इतनी देर कोई बड़ी चीज न थी। १९२८ वाला बारदोली का आन्दोलन भी इसी का परिणाम था। वह सफल भी रहा।

इस प्रकार हम आधुनिक संगठित किसान-आन्दोलन के युग में प्रवेश करते हैं। असहयोग आन्दोलन ने हमें-सारे देश को-जो; जनान्दोलन का अमली सबक सिखाया और अपार शक्ति हृदयंगम करायी, उसके फलस्वरूप आगे चलकर किसान-आन्दोलन को भी जनान्दोलन का रूप मिला, यह सबसे बड़ी बात थी।

असहयोग के कारण कांग्रेसी लोग प्रान्तीय कौंसिलों से बाहर रहे। फलतः मद्रास, बम्बई आदि में अब्राह्मण दल के मंत्री बने और उनने