पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२१९

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( १६२ ) नादानी है कि सीता को वेगम श्री राम को बादशाह कहने से नाक-भी राकोड़ते हैं। तुलसीदास नो श्रीराम जी को अवतार मानते थे। वाह उनके और जानको जी, अनन्य भक्त थे। मगर अपनी रामायण में उनने राजा राम जानकी रानी" लिखा है। ये हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकार माने जाते है । उनी राजा और रानी कहने में तो जरा भी हिचक न हुई। श्राज तक हमारे हिन्दी साहित्य-सेवियों ने भी इस बारे में अपनी जवान न हिलाई । मगर राजा की जगह बादशाह और रानी की जगह वेगम कहते ही तूफान साया गया क्या इसका यह मतलब है कि अब हिन्दी की भी शुद्धि होगी। उसमें से पूर्व प्रताये हजारो शब्दों को गर्दनियाँ देके निकाला जायगा क्या ? अगर ऐया है तो "खुदा हाफिज़ ।" बात तो साफ साफ कहना चहिये । असल में राष्ट्रवादी लोग अधिकांश मध्यम श्रेणी के ही हैं। उनमें भी जो श्राज खोटी कांग्रेसी या गांधीवादी कहे जाते हैं वह तो गिन गिन के मध्यम वर्गीय है, मिडिल क्लास के हैं। वे चाहे अपने को हजार बार कहें कि वे न तो हिन्दू हैं और न मुसलमान, किन्तु हिन्दुस्थानी, पहले हिन्दुस्थानी और पीछे हिन्दू या मुसलमान । मगर दरअसल है वे पहले हिन्दू या।मुसलिम और पीछे हिन्दुस्थानी या राष्ट्रवादी। इसका प्रमाण उनकी सँभली सँभलाई बातों से न मिलके उनके कामों और अचानक की बातों से मिल जाता है। यह हिन्दी, उर्दू या हिन्दुस्थानी का झगड़ा इस बात का जबर्दस्त सबूत है। जब वह लेक्चर देने बैठते हैं तो उनकी तकरीर इस बात की गवाही देती है कि वे क्या हैं । उनकी बातें श्राम लोग समझते हैं या नहीं इसकी उन्हें जरा भी फिक नहीं रहती है । वे तो धड़ल्ले से बोलते चले जाते हैं, गोया उनकी बातें सुनने वाले सभी लोग या तो पण्डित या मौलवी हैं। उनने आलिम- फाजिल या साहित्य सम्मेलन की परीक्षायें पास कर ली है। यदि वे ऐसा नहीं मानते तो लच्छेदार संस्कृत या फारसी के शब्दों को क्यों. उगलते जाते? अगर हिन्दुस्थानी कमिटी अपनी किताबों में. कुछ उर्दू 'फारसी के. .