( १६३ ) शब्द नये सिरे से डालती है या पंजाब के हिन्दू लोग उर्दू में संस्कृत के शब्द घुसेड़ते हैं तो उनका कलेजा कहने लगता है कि हाय हिन्दी चौपट हुई, उर्दू बर्वाद हुई ! साहित्य चौपट हुआ ! संस्कृति मटियामेट हो गई ! मालूम होता है अब हिन्दी को अजीर्ण हो गया है, या उसकी पाचन- शक्ति ही जाती रही है । यही हालत उर्दू की भी है। हमें आश्चर्य तो इस बात का है कि यही लोग मुल्क को आजाद करने का बीड़ा उठाये हुए हैं । हिन्दू-मुसलिम मेल की हाय-तोबा भी यही सजन बराबर मचाते रहते हैं । अगर कहीं हिन्दू-मुसलिम दंगा हो गया तो हिन्दू-मुसलिम जनता को भर पेट कोसने में थकते भी नहीं। लेकिन कभी भी नहीं सोचते, सोचने का कष्ट उठाते कि इन सब अनर्थों की जड़ उनकी ही दूपित मनोवृत्ति है । 'मुख पर पान, मन में आन' वाला जो उनका. रवैया है उसीके चलते ये सारी चीजें होती हैं। सभी बातों में भीतरी दिल से हिन्दूपन और मुसलिमपन की छाप लगाने की जो उनकी वाहियात अादत है उसीके चलते ये सारी बातें होती हैं। अपने को चाहे वह हजार, छिपायें। फिर भी उनका जो यह हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्थानी का झमेला है वही उनकी असलियत को जाहिर कर देने के लिये काफी है। इस कहने से मेरा यह मतलब हर्गिज नहीं कि मैं हिन्दुस्थानी कमिटी की या दूसरों की सारी बातों का समर्थन करता हूँ। मैं कृत्रिम या बनावटी भाषा का सख्त दुश्मन हूँ और मुझे डर है कि हिन्दुस्थानी कमेी कहीं ऐसी ही भाषा न गढ़ डाले । असलियत तो यह है कि मुझे उनकी किताबें वगैरह पढ़ने का मौका ही नहीं मिलता। हाँ, कभी कभी कुछ बातें सामने खामखाह पाई जाती हैं । इसलिये उनकी जानकारी निहायत जरूरी हो जाती है। मगर अखबारों में जो बातें इस सिलसिले में बराबर निकलती रहती हैं और कुछ दोस्तों से भी जो कुछ सुनता रहता हूँ उसीके अाधार पर मैंने यह निश्चय किया है। मैंने देखा है कि इन झगड़ों के पीछे दूसरी ही मनोवृत्ति काम कर रही है। इसलिये हमें सभी जगह और ही चीजें दीखती हैं। अगर मनोवृत्ति ठीक हो जाय तो हिन्दी हिन्दुस्थानी के .
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