पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२२४

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२४ , कांग्रेसी मंत्रि-मंडल के जमाने की बात है। भरसक सन् १९३८-३६ की दास्तान है। युक्तप्रान्त में पन्त जी की मिनिस्ट्री थी। गांधी जी अहिंसा की बात बार बार कहते हैं। अब तो और भी ज्यादा जोर देने लगे हैं । कांग्रेस ने अहिंसा को ही अपना सिद्धान्त रखा है यह बात भी वह कहते ही जाते हैं। मगर कांग्रेसी वजारतों के जमाने में बम्बई और कानपुर में मजदूरों पर जो गोलियाँ चली, लाठीचार्ज हुए और बम्बई में तो आँसू बहाने वाले बम भो चलाये गये, न जाने अहिंसा की परिभाषा के भीतर ये बातें कैसे समा जाती हैं । नागपुर में जब श्री मंचेरशाह अवारी अन्न ग्रहण के लिये सत्याग्रह कर रहे थे तो गांधी जी ने यह कहके उसका विरोध किया था कि सशस्त्र सत्याग्रह कैसा ? जब शस्त्र लेके चलियेगा तो अहिंसा मूलक सत्या संभव नहीं । सत्याग्रह और शस्त्र ग्रहण ये दोनों परस्पर 'विरोधी बातें हैं। इसलिये यह चीज बन्द होनी चाहिये । हमारे दिमाग में तो उनकी यह दलील उस समय भी समा न सकी थी। इस समय तो और भी नहीं समाती । सिर्फ शस्त्र लेकर चलने से हिंसा कैसे होगी १ जब उसे नहीं चलाने का प्रण कर लिया तो फिर हिंसा का क्या सवाल १ नहीं तो फिर अकाली सिख कभी सत्याग्रही होई नहीं सकते। क्योंकि वे तो कृपाण के बिना एक मिनट रही नहीं सकते । मगर गांधी जी ने उन्हें भी बार बार सत्याग्रह में भत्तों किया है। लेकिन जब यह बात है तो फिर लाठी, गोली और बम चलवाके भी कांग्रेसी मंत्रिगण अहिंसक कैसे रह गये ? और अगर नहीं रहे तो गांधी जी ने उनका विरोध न करके समर्थन क्यों किया? उनके इन कामों पर उनने मुहर क्यों लगा दी १ इसीलिये हमें तो उनकी अहिंसा अजीव घपला मालूम होती है। यही कारण है कि उनके अहिंसक अनुयायी उन्हें खूब ही उगते हैं। an