पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२२५

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( १६% ) मजा तो यह है कि गांधी जी यह बात न तो समझते और न मानते हैं। मुझे तो उनके और उनके प्राइवेट सेक्रेटरी श्री महादेव देसाई के क्रोध और डाट-फटकार का शिकार फेवल इसीलिये बनना पड़ा है कि मैं यह बातें साफ. बोलता हूँ और काम भी वही करता हूँ जो बाहर भीतर एक रस हो । किसानों को भी यही लिवाता है नि. नाना फौजदारी के अनुसार अपनी और अपनी जायदाद वगैरह की हिफाजत के लिये उतनी हिंसा भी कर सकते हो जितनी जरूरी हो जाय । मैं किसानों या पाप लोगों को पहले से ही मिला यह कानूनी हक छोड़ने और छुदवाने के लिये किसी भी हालत में तैयार नही हूँ। इसीलिये सन् १९३८ वाली हरिपुरा की कांग्रेस से पहले हरिजन में श्री महादेव देसाई ने मेरे खिलाफ, लम्बा लेख भी लिखा था जिसका उत्तर मुझे देना पड़ा । मगर यह जान के मुझे निहायत ताजुब हुअा जब कि ठीक उसी समय हरिपुरा जाते हुए मध्य प्रान्त में दौरे के लिये वर्धा जाने पर और अहिंसा के अवतार श्री विनोबा भावे से बातें करने पर पता चला कि किसान सभा के बारे में हिंसा का निश्चय करने के पहले उन लोगों ने नारी बातें जानने की कोशिश तक न की थी। उन्दी के श्राश्रम में श्री विनोवा जी से मेरी घंटों बातें होती रहीं। इरिजन में वह लेख ताजा ही निकला था। इसलिये बातचीत का विषय वही बात थी । वे लोग वास्तविक दुनिया से कितने कोरे हैं इसकी जानकारी मुझे वहीं हुई । किसान-सभा के किसी कार्यकर्ता ने कोई बात हिंसा-अहिंता के बारे में कही या न कही। मगर गांधी जी के भक्तों ने उनके पास रिपोर्ट पहुँचा दी और उनने उसे ध्रुव सत्य मान लिया । दूसरों को तो हजार बार कहते हैं कि पूरी जाँच के बाद ही चातें मानो। सचाई का पता लगायो । मगर मेरे बारे में यह इलजाम लगाने के पहले उनने मुझसे एक बार पूछना तक उचित न समझा । किसान-सभा पर भी यही दोपारोपण किया गया। लेकिन सभा को सफाई देने का.मौका तक न दिया गया। यह है गांधी जी का न्याय! यह है उनका सत्य ! न सिर्फ उनने निश्चय कर लिया बल्कि अपने संगी-साथियों के दिमाग में इसे भर दिया । 1